Book Title: Jainpad Sangraha 05
Author(s): Jain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay
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(१०० (४)
गग-भैरों। चरनन चिन्ह चितारि चित्तम, चंदन जिन चौवीस जनं ॥ टेक ॥ रिपभ वृषभ गज अजितनाथक, संभवक द बांज सदं । अभिनंदन कपि कोक सुमतिक, पदम दमप्रभ पाय धरूं ॥ चरनन० ॥ १ ॥ स्वस्ति सुपारस
द चंदक, पुप्पटत पद मत्स्य बलं । सुर्रतम शीतल रिनकमलम, श्रेयांस गड़ा वनचलं ॥ चरनन० ॥२॥
सा वासु बराह विमलपद, अनंतनाथके सहि पलं । र्मिनाथ कुंस गांत हिरनजुत, कुंथुनाथ अज मीन ८॥ वरनन० ॥३॥ कलश मल्लिकूरम मुनिसुव्रत, मि कमल सतपत्र तरूं । नेमि संग्व फनि पास वीर रि. लखि वुधजन आनन्द रूं । चरनन० ॥४॥
(२४)
गण-मल्हार। लूम झूम बरसै बदरवा, मुनिजन ठाड़े तरुवर तरवा ।। ककारी घटा तसी वीज डरावै, वे निधरक मानों काठ जरवा।। ल्म झूम० ॥१॥ बाहरि को निकस ऐने में, पड़बड़े घर हू गलि गिरवा । झंझा वायु बहे अति सियरी,
हले निज बलके घरवा ।। लूम०॥२॥ देखि उन्हें ज्या प्य मुनाव, ताकी तो कर हूं नौकरवा । सफल होय सिर व परतिक, बुधजनके नव कारज सरवा ।। लूम० ॥३॥
(सनामोऽय पदसंग्रहः)

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