Book Title: Jainpad Sangraha 05
Author(s): Jain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay
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( ५ )
ज्ञानमई हमको दरसाये । ऐसे ही हममें हम जानें, बुधजन गुन मुख जात न गाये || श्रीजिन० ॥ ३ ॥ ( ९ ) राग-ललित एकतालो । बधाई राजै हो आज राजे, बधाई राजै, नाभिरायके द्वार। इंद्र सची सुर सब मिलि आये, सजि ल्याये गजराजै ॥ वधाई० ॥ १ ॥ जन्मसदनतै सची ऋषभ ले, सोपि
ये सुरराजै । गजपै धारि गये सुरगरिपै, न्होंन करनके काजै ॥ बधाई० ॥ २ ॥ आठ सहस सिर कलस जु ढारे, पुनि सिंगार समाजै | ल्याय धस्यौ मरुदेवी करमै, हरि नाच्यौ सुख साजै ॥ बधाई० ॥ ३ ॥ लच्छन व्यंजन सहित सुभग तन, कंचनदुति रवि लाजै । या छवि बुधजनके उर निशि दिन, तीनज्ञानजुत राजै ॥ वधाई० ॥ ४ ॥ ( १० ) राग-ललित जलद तितालो ।
८ हो जिनवानी जू, तुम मोकौं तारोगी ॥ हो० ॥ टेक ॥ आदि अन्त अविरुद्ध वचनतें, संगय भ्रम निरवारोगी ॥ हो० ॥ १ ॥ ज्यौं प्रतिपालत गाय वत्सकौं, त्यों ही मुझको पारोगी । सनमुख काल वाघ जब आवै, तव तत्काल उवारोगी || हो० ॥ २ ॥ वुधजन दास वीनवै माता, या विनती उर धारोगी । उलझि रह्यौ हूं मोहजालमैं, ताक तुम सुरझारोगी ॥ हो० ॥ ३ ॥
( ११ ) राग बिलावल कनड़ी ।
मनकै हरष अपार-चितकेँ हरप अपार, वानी सुनि

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