Book Title: Jainpad Sangraha 05
Author(s): Jain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 9
________________ . पदसख्या [ पृष्ट पदसख्या ६५ तिहारी याद होते ही० १५७ / १८ नैन शान्त छवि देखि० ४२ ७ तुम चरननकी भरन० १६१/ २२ निरखे नाभिकुमारजी ५३ ७५ तू पहिचान रे मन जिन. १७९ / ४८ नरदेहीको धरी तो कछ १२१ ७७ ते तो गुरु सीख नमानी १८५/६१ निरखि छवी परमेसुरकी. १४७ ८२ तुम मुध आर्य मोर. १९७६२ निसि दिन लख्या कर रे १४९ ८२ तू तो है जानम नाही. १९९९ नेमिजीके संग चली. १६७ ९१ तेरी आवत नीडो काल २२१ / ९१ निज कारज क्याँन किया० २२० ९७ ते ना जानी तोहि उप० ०१६ ९८ तू आतम निरभय ढोलि० २३८ १ प्रात भयो मव भविजन० १ २ पतितउधारक पतित र० ३ ९ थे ही मोनें तारोजी प्रभु० १९ ९ प्रभूजी अरज म्हारी उर० २० ३१ थाका गुण गाम्या जी० ७७.२० प्रभ थास अरज हमारी हो ४७ ३८ थामा गुन गास्या जी० ९६. ५६ परमजननी धरमकथनी० १३४ ४८ ये म्हारे मन भाया जी० ११ ६० प्रभुजी चन्द जिनदा म्हें. १४३ ८० यारी थारी चेतन मति. ६५ पूजन जिन चालो री मि० १५६ ८१ थे चितचाहीदा नजरूं० १९४ ७७ पूजत जिनराज आज. १८४ ८७ पार छ पारै छ दिन पा० २११ २७ देखो नया आज उछाव. ६६./ ९० प्रभु थाका वचनमै वहुत० २१९ ५० दुनिया का ये हवाल क्यों० १२३ ५३ टेखे मुनिराज आज० १२९ ९६ देख्या थारो सुद्ध सरूप० २३३ / ५ वधाई राजे हो आज राज ११ वावा में न काहका कोई २५ १२ धर्म विन कोई नहीं अपना. २७ / १४ बधाई भई हो तुम निर० ३०. १३ धनि सरधानी जगमै २९०/ १४ वधाई चन्दपुरीमै आज ३२. २३ पनि चन्दप्रभटेव ऐसी मु० ५६.३५ वन्यौ म्हारै या घरीमै रग ८७. ९४ धन्य मुदत्त मुनि वानि० २२९ ३७ वेगि सुधि लीज्या शारी० ९३. | ७८ वधाई भई है महावीर. १८९ ७ नरभव पाय फेरि दुख० १४८० वानी जिनकी वखानी हो. १९२ १५ निजपुरमै आज मची० ३४ ८३ वूया रे भोळा जीव मूर० २०१

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