Book Title: Jainpad Sangraha 05
Author(s): Jain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 7
________________ पदोंकी वर्णानुक्रमणिका। स -- पदरल्या । पृष्ठ पटसंख्या ४४ आज मनरो वन है जिन. १०९, ८ नरज म्हागं मानो जी० १७.४६ आयो जी प्रमु याप कर० ११५. 11. अरज कह (नचलीम रह) २३७ आयो प्रमु नारे इग्बार० १३७ १. अहो देखो वलदानी० ३९६७ आज मुखढाई क्याई. १६२ २१ अरेहार ते तो सुपरी० ४९ / ७३ आनद भयो निरचन१७७ २५ व अप करत लजाय० २१ ९० लाज लाया है उनाही. २२३ ? हो मेरी नुनी वीनती० ८२. इ ३. अब घर आये चेतनराय० ९१, ५१ इस वक जो भविक्जन० १२४ ४० अब ये क्या हुन पात्री. १००० र ४३ अब तू जान २ तन० १०७॥२३ उनम नरभव पायक मति० ५५ ४६ वी हो जावाजा यान० १११.०ी रे सुद्धानी जीव १४५ ५४ अहो । अब विलन न० १३१.८ टमाहीन्हाने लागि गो० १६५ ५. अग्जजिनगज यह मेरी० १३. ५८ जब हम निश्चय जान्या. १९४९ रूपम तुमसे ताल मेग० १२२ ६३ अदभुत हरप भया गै० १५२/ ७२ अजी ने तो हेन्या पटन. १७४/३० ऐमा ध्यान लगावो भवः ७४. ७९ अष्ट कन म्हारी काई. १९१/५८ ऐसे प्रमुक गुनन कोड० १३८ ८६ अब तेरी मुनि वातही १९८ / ९५ ऐसे गुरके गुननन. २३० ८४ अनी मेन नाभिनंदन० २०३ यो ८५ अवता या जोग नाही २० २०६/६४ ओर तो निहारी दुन्खिया० १५३ १९ अब जगजीता वै मानू २४० औ या । १ और टौर क्यों हेन्त प्याग ४. 1. आगे कहा करसी भैया० २०.१० और सबै मिलि होरि० २६ ३९ आजती वधाईहो नाभि० ९८० क ४३ आनंद हरप अपार दुम० १०२/ १ किंकर अरज करत जिन० १,

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