Book Title: Jainpad Sangraha 05 Author(s): Jain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay View full book textPage 5
________________ निवेदन। इस पदसंग्रहमें बुधजनजीके बनाए हुए केवल उन्ही पदोंको छपाया है, जो बुधजनविलासमें संग्रह हैं । जहा तक हम जानते है, बुधजननीके पद इनके सिवाय और नहीं होंगे। यदि इनके अतिरिक्त और कोई पढ होंगे और हमें कहींसे प्राप्त हो सकेंगे, तो हम उन्हें इसकी द्वितीयावृत्तिमें शामिल कर देंगे। वुधजनजीकी कविता मारवाड़ी शब्दोंकी मात्रा बहुत अधिक है और संगोधककी मातृभाषा मारवाड़ी नहीं है। इसलिये यद्यपि यह पदसंग्रह जैसा चाहिये वैसा शुद्ध नहीं छप सका होगा, तौ भी इसके संशोधनमें मारवाड़ी सज्जनोंकी सहायतासे भरसक परिश्रम किया गया है । इस वातपर भी ख्याल रक्खा गया है कि, रचयिताके प्रयोग किये हुए शब्दोंमें कुछ लौट फेर न हो जावे । मारवाड़ी वा अन्य किसी भाषाके किसी शब्दको सुधार कर प्रचलित हिन्दीमें वा शुद्धसंस्कृतरूपमें करनेकी कोशिश नहीं की गई है। स्थान स्थानपर ऐसे शब्दोंका अर्थ भी टिप्पणीमें लिख दिया गया है, जो कठिन थे अथवा सर्वसाधारणकी समझमें नहीं आ सकते थे । जो शब्द अथवा वाक्य परिश्रम करने पर भी समझमें नहीं आये हैं, उनके आगे प्रभांक (2)' कर दिये है। पदोंके राग वा ताल जैसे बुधजनविलासमें लिखे हुए थे, वैसेके वैसे लिख दिये है। अनेक पद ऐसे भी हैं, जिनके राग वगैरह नहीं दिये गये, क्योंकि मूल प्रतिमें रागादिके नाम मिले नहीं और संशोधक खयं उन्हें लिख नहीं सका।Page Navigation
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