Book Title: Jainpad Sangraha 05
Author(s): Jain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 6
________________ ( २ ) इस संग्रहमें पंजाबी भाषाके कई एक पद ऐसे छाप दिये गये हैं, जो मूर्ख लेखकोंकी कृपासे रूपान्तरिक हो गये है और पंजाबी भाषा नहीं जाननेसे हमारे द्वारा उनका संशोधन ठीक ठीक नहीं हो सका है । आशा है कि, इस विषयमें पाठक हमको क्षमा प्रदान करेंगे । इस संग्रहकी प्रेसकापी हमारे एक इन्दौरनिवासी मित्रने ३न्दौरके जैनमन्दिरकी एक हस्तलिखित प्रतिपरसे करके भेजी है और उसका संशोधन हमने अपने पासकी एक दूसरी प्रतिपरसे किया है | बस इन दो प्रतियोंके सिवाय बुधजनविलासकी और कोई प्रति हमें नहीं मिल सकी । कविवर बुधजनजीका यथार्थ नाम पं० विरघीचन्दजी था । आप खंडेलवाल थे और जयपुरके रहनेवाले थे । आपके बनाये हुए चार ग्रन्थ प्रसिद्ध है और वे चारों ही छन्दोबद्ध है । १ तत्त्वार्थबोध, २ बुधजनसतसई, ३ पंचास्तिकाय, और ४ बुधजनविलास । ये चारों ग्रन्थ क्रमसे विक्रम संवत, १८७१ - ८१-९१ और ९२ में बनाये गये हैं । बस आपके विषयमें हमको इससे अधिक परिचय नहीं मिल सका । बम्बई - चन्दावाड़ी | श्रावणकृष्णा ८ श्रीवीर नि० २४३६ नाथूराम प्रेमी ।

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