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(२९) न हतुं पण जैनकोको प्राचीनकाले पण क्षुद्र न होइने, पोताना धर्ममतो विषे केवल उपर उपरनी कल्पनाओ करनारा करतां, विशेष होशीयारज हता, ए निर्विवाद सिद्ध थाय छे.
जैनोमां जे अग ग्रंथो के ते पूर्वेना हता, श्वेताबर अने दिगंबर ए बन्ने पोताना ग्रथोना माटे कहे छ केपूर्वना ग्रंथोनुं ज्ञान जतां जतां बिलकुल चाल्युं गयु. जो के नवा मतो प्राचीन ग्रंथो लुप्त थवा बहानुं धणे ठेकाणे बतावे छे. परंतु जैनग्रंथो माटे एम मानवानुं कारण नथी. पूर्व एटले पेहलां उपलब्ध थएला ग्रंथो, एम मानवं विशेष योग्य लागे छे एकंदर रीते जैनधर्मनो उद्भव, अने विकाश, बीजाथी न थतां स्वतंत्र छ एम सारी रीते सिद्ध थाय छे." ।
॥ इति उपाध्येजीना बीजा लेखनो सार संपूर्ण ।
. ३ लेख त्रीनो पृ. ७८ थी-योगजीवानंदपरमहंसे जनाचार्य श्रीआत्मारामजी महाराजा उपर लखेला पत्रनो सार-" महात्मन् ? व्याकरप्पादि नाना शास्त्रोंके अध्ययना:ध्यापनद्वारा-वेदमत गलेमें बांध में अनेक राजा-प्रजाके समा विजय कर देखा, व्यर्थ मगज मारना है. एक जैनशिष्यके हाथ
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