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आचारांग-सूची
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श्रु०२, अ०२ उ०३ सू०१०१
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शय्यातर के घर से आहार लेने का निषेध जिस उपाश्रय में गृहस्थ का निवास हो, अग्नि-पानी का आरंभ हो, स्वाध्याय स्थान का अभाव हो उसमें ठहरने का निषेध गृहस्थ के घर में होकर उपाश्रय में जाने का मार्ग हो तो उस उपाश्रय में ठहरने का निषेध गृहस्थ के घर में गृहकलह होता है " , तेल मर्दन होता है " , स्नानादि होता है " , जलक्रीड़ा होती है
, नग्न या अर्ध नग्न स्त्रियां होती हैं
, विकार वर्धक भित्ति चित्र होते हैं जीव-जन्तु वाला संस्तारक लेने का निषेध भारी
, प्रत्यर्पण के अयोग्य , शिथिल बंधवाला , जीव-जन्तु रहित, लघु, प्रत्यर्पण योग्य एवं दृढ़ संस्तारक लेने का विधान चार संस्तारक पडिमा १ प्रथमा पडिमा-संस्तारकों का नाम लेकर किसी एक संस्तारक का ग्रहण करना २ द्वितीया पडिमा--इन संस्तारकों में से अमुक एक संस्तारक ग्रहण करना। ३ तृतीया पडिमा-उपाश्रय में विद्यमान संस्तारक ग्रहण करना अन्यथा उत्कटुक आसन आदि से रात्रि व्यतीत करना
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