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श्रु०२, अ०२, उ०३ सू०६० ३६
आचारांग-सूची ७८ जिन स्थानों में मासकल्प या वर्षावास रह चुके हों,
उनमें पुनः रहने का निषेध उक्त स्थान में दो तीन मास का व्यवधान किये बिना ठहरने का निषेध श्रमण या गृहस्थ के निमित्त बनवाये हुए स्थान में अन्य मतानुयायी श्रमणों के ठहरनेपर भिक्षु के ठहरने का विधान उक्त स्थान में अन्य मतानुयायि श्रमण न ठहरे हों तो भिक्षु के ठहरने का निषेध गृहस्थ अपने लिए बनवाया हुआ मकान साधुओं को समर्पित करे और अपने लिए दूसरा मकान बनवावे तो
उसमें ठहरने का निषेध ८३ श्रमणादि की गिनती करके बनवाये हुए एवं समर्पित
किये हुए स्थान में ठहरने का निषेध सूत्र ८१ के समान एक भिक्षु के निमित्त निर्माण कराए हुए एवं समर्पित किए हुए स्थान में ठहरने का निषेध गृहस्थ ने अपने लिए मकान बनवाया हो और अपने लिए ही अग्नि का आरंभ किया हो, ऐसे स्थान में ठहरने
का विधान सूत्र संख्या १५
तृतीय उद्देशक उपाश्रय के दोषों का कथन, और उनकी यथार्थता बहुत छोटे द्वार वाले उपाश्रय में अथवा अनेक श्रमण जहां ठहरे हुए हों, ऐसे उपाश्रय में ठहरने की विधि
उपाश्रय के लिए आज्ञा प्राप्त करने की विधि ६० क शय्यातर का नाम गोत्र पूछना
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