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कृत 'आराधना कथा प्रबन्ध', ब्रह्मनेमिदत्त-कृत ‘आराधना कथाकोश', कन्नड़ आचार्य शिवकोटि-कृत 'वड्वाराधने'। परन्तु गाथा 2162 में 'आराधना भगवदी' एवं 'भत्तीए वण्णिदा सन्ति' के आधार पर इस ग्रन्थ का नाम 'भगवती आराधना' अधिक प्रसिद्ध हो गया। हमने भी इसे 'भगवदी आराधणा' ही स्वीकारा है।"
'आराधना' जीवनरूपी रंगशाला का उपसंहार है। यह वैराग्यमूलक ऐसा महाद्वार है जिसमें प्रवेश कर आराधक अपने जीवन को परम शान्ति की खोज में समर्पित कर देता है। दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों परम्पराओं में इसे समानरूप से महत्त्वपूर्ण स्थान मिला है। दिगम्बर सम्प्रदाय में मूलाचार आचारपरक ग्रंथ है। उसमें समाधिमरण पर विशेष व्याख्यान नहीं मिलता पर 'भगवती आराधना' में मुनि-आचार और मरणसमाधि दोनों का कथन उपलब्ध होता है। दिगम्बर परम्परा में भगवती आराधना के अतिरिक्त अन्य कोई विशेष मूलग्रंथ उपलब्ध नहीं है। जो भी हैं, प्राय टीका रूप में हैं। इनमें अपराजितसूरिकृत विजयोदया और आशाधर-कृत 'मूलाराधना दर्पण' विशेष उल्लेखनीय हैं।" _ "श्रीचन्द्र (11वीं शती) ने अपने अपभ्रंश कथाकोश में यह संकेत किया है कि ये कथाएँ जिनेन्द्र से गणधर, गणधर से श्रेणिक और श्रेणिक से परम्परागत रूप से शिवकोटि मुनीन्द्र तक पहुँचीं। मूलाराधना में इन कथानकों का उपयोग बड़े सुन्दर ढंग से हुआ है। श्रीचन्द्र ने गाथाओं को स्पष्ट करने में इन कथाओं का उपयोग किया है। वे पहले गाथा का अर्थ देते हैं और फिर कथा देकर उसकी व्याख्या करते हैं, इसलिए उन्होंने ऐसी गाथाओं को चुना है जिन्हें कथा के माध्यम से व्याख्यापित किया जा सकता है।"
"प्रभाचन्द्र (11वीं शती) का कथाकोश संस्कृत गद्य में है और प्राकृत-संस्कृत के उद्धरणों से भरा हुआ है। इसमें ऐसी धर्मकथाएँ दी गई हैं जिनमें चारों तरह की आराधनाओं के आराधकों का वर्णन है। इसे 'आराधना सत्कथा प्रबन्ध' कहा गया है।"
" 'वडाराधने' नामक एक कथाकोश कन्नड़ भाषा में उपलब्ध है। मूडबिद्री के अनुसार इसे 'शिवकोट्याचार्य' की कृति कहा गया है। कोल्हापुर का ताड़पत्र प्रति (क्र. 45) में भी लगभग यही नाम मिलता है। इसमें 19 कथाएँ दी गई हैं।" ___“ 'वड्डाराधना' भी 'भगवती आराधना' का ही एक कन्नड़ रूप है। पाठक ने जिन रेवाकोट्याचार्य' का उल्लेख किया है वे 'शिवकोट्याचर्या' ही होने चाहिए।"
"श्वेताम्बर परम्परा में 'आराधना' पर अपेक्षाकृत अधिक साहित्य मिलता है। आगमिक ग्रंथों में आचारांग, सूत्रकृतांग, उत्तराध्ययन, दशश्रुतस्कन्ध, बृहत्कल्प, जीतकल्प, व्यवहार
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