Book Title: Jain Vidya 25
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 82
________________ जैनविद्या 25 69 मरण के पाँच प्रकार ___आचार्य शिवार्य ने सत्रह प्रकार के मरणों का उल्लेख करते हुए उनमें विशिष्ट पाँच मरणों को इस प्रकार कहा है28 - ___ 1. बाल-बाल-मरण, 2. बाल-मरण, 3. बाल-पण्डित-मरण, 4. पण्डितमरण, 5. पण्डित-पण्डित-मरण। ये इस प्रकार हैं - मिथ्यादृष्टि जीवों का मरण 'बाल-बाल-मरण' है। असंयत सम्यग्दृष्टि का मरण ‘बाल-मरण' कहलाता है। देशव्रती श्रावक के मरण को 'बाल-पण्डित-मरण' कहते हैं। चारों आराधनाओं से युक्त निर्गन्थ मुनियों के मरण का नाम ‘पण्डित-मरण' है तथा केवलज्ञानी भगवान की निर्वाणोपलब्धि ‘पण्डित-पण्डित-मरण' कहलाती सल्लेखना का फल सल्लेखना-धारक धर्म का पूर्ण अनुभव और प्राप्ति करने के कारण नियम से निःश्रेयस और अभ्युदय प्राप्त करता है। स्वामी समन्तभद्र सल्लेखना का फल बतलाते हुए लिखते हैं कि 'उत्तम सल्लेखना करनेवाला धर्मरूपी अमृत को पान करने के कारण समस्त दुःखों से रहित होता हुआ निःश्रेयस और अभ्युदय के अपरिमित सुखों को प्राप्त करता है।' विद्वद्वर पं. आशाधरजी भी कहते हैं कि 'जिस महापुरुष ने संसार-परम्परा के नाशक समाधिमरण को धारण किया है उसने धर्मरूपी महान निधि को परभव में जाने के लिए साथ ले लिया है। जिससे वह उसी तरह सुखी रहे जिस प्रकार एक ग्राम से दूसरे ग्राम को जाने वाला व्यक्ति पास में पर्याप्त पाथेय रखने पर निराकुल रहता है। इस जीव ने अनन्त बार मरण किया, किन्तु समाधि-सहित पुण्यमरण कभी नहीं किया, जो सौभाग्य एवं पुण्योदय से अब प्राप्त हुआ है। सर्वज्ञदेव ने इस समाधि-सहित पुण्य-मरण की बड़ी प्रशंसा की है क्योंकि समाधिपूर्वक मरण करनेवाले महान आत्मा निश्चय से संसार-रूपी पिंजरे को तोड़ देता है, उसे फिर संसार के बंधन में नहीं रहना पड़ता है।' 1. सम्यक्कायकषायलेखना सल्लेखना। कायस्य बाह्यस्याभ्यन्तराणां च कषायाणां तत्कारणहापनक्रमेण सम्यग्लेखना सल्लेखना। - सर्वार्थसिद्धि, 7-22 2. उपसर्गे दुर्भिक्षे, जरसिरुजायां च निःप्रतिकारे। धर्माय तनुविमोचनमाहुः सल्लेखनामार्याः।।122।। - रत्नकरण्ड श्रावकाचार

Loading...

Page Navigation
1 ... 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106