Book Title: Jain Vidya 25
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 101
________________ जैनविद्या 25 मल का स्राव होता रहता है, जैसे घाव से रुधिर व राध का स्राव होता रहता है वैसे इस शरीर से स्राव होता रहता है। कविवर दौलतराम और द्यानतराय की भाँति कविवर मंगतराय के काव्य पर भी 'भगवती आराधना' का विशेष प्रभाव देखने को मिलता है। कविवर मंगतराय की प्रसिद्ध काव्य-रचना 'बारह भावना' है। यहाँ उसी से दो उद्धरण प्रस्तुत हैं - पर्वत पतित नदी सरिता जल बहकर नहिं हटता । श्वास चलत यों घटै काठ ज्यों, आरे सौं कटता ।। अनित्य भावना की उक्त पंक्तियों पर 'भगवती आराधना' की निम्नलिखित गाथा का प्रभाव अत्यन्त स्पष्ट रूप से दिखाई देता है - - धावदि गिरिणदिसोदं व आउगं सव्वजीवलोगम्मि । सुकुमालदा वि हीयदि लोगे पुव्वण्हछाही व ।।1718।। 88 जैसे पर्वतीय नदी प्रवाह से दौड़ती है वैसे ही समस्त जीवलोक में आयु प्रवाह से दौड़ती है, देह की सुकुमारता भी ऐसे नष्ट होती है जैसे सुबह की छाया तुरन्त नष्ट होती है। ज्यों तरवर पै रैन बसेरा पंछी आ करते। कोस कोई दो कोस कोई उड़ फिर थक थक हारे । । एकत्व भावना की उक्त पंक्तियाँ 'भगवती आराधना की निम्नलिखित गाथा से बहुत कुछ मिलती-जुलती हैं - रतिं रत्तिं रुक्खे रुक्खे जह सउणयाण संगमणं । जादीए जादीए जणस्स तह संगमो होई ||1752 || जैसे रात्रि में प्रत्येक वृक्ष पर अनेक पक्षियों का ही लोक में जन्म-जन्म में प्राणियों का संयोग होता है। वृक्ष का आश्रय लेकर प्रातः गमन कर जाता है वैसे ही संसारी प्राणी आयु के समाप्त होने पर पूर्व शरीर व परिवार को त्यागकर अन्य शरीर को ग्रहण कर नये-नये संबंधियों को ग्रहण करता है। संयोग होता है वैसे जैसे पक्षी रात को विक्रम की 18वीं शताब्दी के मूर्धन्य कवि महाकवि भूधरदास के काव्य पर भी 'भगवती आराधना' का अत्यधिक प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। उदाहरणार्थ उनके प्रसिद्ध महाकाव्य 'पार्श्वपुराण' की निम्नलिखित पंक्तियाँ देखिये

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