Book Title: Jain Vidya 25
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 105
________________ जैनविद्या 25 सो डज्झदि व ण वा परो रोसाइट्ठो णीलो हदप्पभो अरदिअग्गिसंसत्तो। सीदे वि णिवाइज्जदि वेवदि य गहोवसिट्ठो व।1354। भिउडीतिवलियवयणो उग्गदणिच्चलसुरत्तलुक्खक्खो। कोवेण रक्खसो वा णराण भीमो णरो भवदि।1355। जह कोई तत्तलोहं गहाय रुट्ठो परं हणामित्ति। पुव्वदरं सो डज्झदि व ण वा परो पुरिसो।1356। - आचार्य शिवार्य भगवती आराधना - जो क्रोध से ग्रस्त होता है उसका रंग नीला पड़ जाता है, देह (शरीर) की कांति नष्ट हो जाती है, आवेग-उद्वेग की आग से संतप्त होता है, कण्ठ सूखने लगता है, शरीर काँपने लगता है।13541 क्रोध के कारण भृकुटि चढ़ने से मस्तक पर तीन रेखाएँ पड़ जाती हैं। नेत्र लाल होकर विस्तीर्ण (चौड़े) हो जाते हैं, फैलकर बाहर निकलने को हो जाते हैं। इस तरह क्रोध से आविष्ट मनुष्य दूसरे मनुष्यों के लिए राक्षस की भाँति भयानक हो जाते हैं।1355। कोई व्यक्ति रुष्ट होकर लोहे का गर्म पिण्ड उठाकर किसी दसरे का घात या अनिष्ट करने के लिए तत्पर होता है तो वह उस तप्त लौहपिण्ड पकड़ने से दूसरे का अनिष्ट करने से पहले अपना हाथ जला लेता है, इस प्रकार पहले उसका अनिष्ट हो जाता है अर्थात् क्रोध से आविष्ट व्यक्ति द्वारा दूसरे का अनिष्ट हो या न हो पर पहले स्वयं का अनिष्ट अवश्य कर लेता है। अनु. - पण्डित कैलाशचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री

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