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जैनविद्या 25
अप्रेल 2011-2012
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परवर्ती जैन हिन्दी काव्य पर 'भगवती आराधना' का प्रभाव
- डॉ. वीरसागर जैन
मंगलाचरण ज्ञान-दर्शन-चरित-तप की जो परम प्रतिपादिका। सकल दुःख की नाशिका व सर्वसुख-संपादिका।। निर्ग्रन्थ यति-आचार से करती अपूर्व प्रभावना।
नमन शत-शत योग्य है यह भगवती आराधना।। 'भगवती आराधना' आचार्य शिवार्य का एक ऐसा सरस और लोकप्रिय ग्रंथ है कि उसका उसके रचनाकाल से लेकर अबतक अनवरतरूप से परम आदरपूर्वक पठन-पाठन होता रहा है। न केवल पठन-पाठन होता रहा है, अपितु परवर्ती साहित्यकारों की रचनाओं पर उसका अत्यधिक प्रभाव भी पड़ा है। प्रमाणस्वरूप मध्यकालीन हिन्दी-जैन-साहित्य से अनेक उद्धरण प्रस्तुत किए जा सकते हैं। यथा -
जं अण्णाणी कम्मं खवेदि भवसयसहस्सकोडीहिं।
तं णाणी तिहिं गुत्तो खवेदि अंतोमुहत्तेण।।107।।
- सम्यग्ज्ञान से रहित अज्ञानी जिस कर्म को लाख-करोड़ भवों में नष्ट करता है उस कर्म को सम्यग्ज्ञानी तीन गुप्तियों से युक्त हुआ अन्तर्मुहूर्त मात्र में