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जैनविद्या 25
समाहित चित्तवाले चाँद-सितारों की पूजा होती है। समाहित चित्तवाले कूल-किनारों की पूजा होती है।। समाहित चित्त ही जीवन है, बुद्धत्व का प्राण है मित्रो - समाहित चित्त में बँधकर ही विश्वास-विचारों की पूजा होती है।।7।।
समाहित चित्त की गरिमा, क्षपक की गरिमा है। समाहित चित्त की महिमा, क्षपक की महिमा है।। समाहित चित्त है क्षपक की सर्वश्रेष्ठ अटूट साधना -
समाहित चित्त की मर्यादा अमावस्या नहीं पूर्णिमा है।।8।। समाहित चित्त सुरक्षा है और क्षपक की शान है। समाहित चित्त प्रगति है और सद्गुणों की खान है।। दोस्तो! जड़ें जमाकर टिकनेवाला दरख्त ही फलता है - वस्तुतः समाहित चित्त, अमर जीवन के लिए वरदान है।।9।।।
समाहित चित्त क्षपक की सर्वोत्तम निधि है। समाहित चित्त सल्लेखना की सर्वोत्तम विधि है। सल्लेखना सदा सुरक्षित है, जिसका है समाहित चित्त - समाहित चित्त सत्यं, शिवं, सुन्दरं की उपलब्धि है।।10।।
मरण के भेद - शिवार्य ने भगवती आराधना में सत्रह प्रकार के मरणों का उल्लेख किया है -
1. आवीचिमरण, 2. तद्भवमरण, 3. अवधिमरण, 4. आदि अन्तमरण, 5. बालमरण (अव्यक्त बाल, व्यवहार बाल, ज्ञान बाल, दर्शन बाल, चारित्रबाल), 6. पण्डितमरण (व्यवहार पण्डित, दर्शन पण्डित, ज्ञान पण्डित, चारित्र पण्डित), 7. आसन्नमरण, 8. बालपण्डितमरण, 9. ससल्यमरण, 10. बलायमरण, 11. वसट्ट मरण (इन्द्रिय वसट्ट मरण, वेदना वसट्ट मरण, कषाय वशात मरण, नोकषाय वशार्त मरण), 12. विप्पाणसमरण, 13. गिद्ध पुट्ठमरण, 14. प्रायोपगमनमरण, 15. इंगिनीमरण, 16. भक्त प्रत्याख्यानमरण 17. केवलीमरण (पण्डित-पण्डित मरण)।
जैनागम24 में तीन प्रकार से शरीर का त्याग बताया गया है - 1. च्युत, 2. च्यावित और 3. त्यक्त।
1. च्युत : आयु पूर्ण होकर शरीर का स्वतः छूटना ही च्युत-मरण कहलाता है।