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जैनविद्या 25
किं णाम तेहिं लोगे, महाणुभावेहिं हुज्ज ण य पत्तं।
आराधणा भयवदी सयला आराधिदा जेहिं।।2012।। __ - जिन्होंने सम्पूर्ण भगवती आराधना का आराधन किया उन महानुभावों ने लोक में क्या प्राप्त नहीं किया।
ते वि य महाणुभावा, धण्णा जेहिं च तस्स खवयस्स। सव्वादरसत्तीए, उवविहिदाराधणा सयला।।2013।।
- वे महानुभाव भी धन्य हैं जिन्होंने सम्पूर्ण आदर और शक्ति से उस क्षपक की आराधना सम्पन्न की है।
जो उवविधेदि सव्वादरेण आराधणं खु अण्णस्स। संपज्जदि णिविग्या सयला आराधणा तस्स।।2014।।
- जो निर्यापक सम्पूर्ण आदर के साथ अन्य की आराधना करता है, उसकी समस्त आराधना निर्विघ्न पूर्ण होती है।
ते वि कदत्था धण्णा, य हंति जे पावकम्ममलहरणे। पहायंति खवयतित्थे, सव्वादर-भक्ति संजुत्ता।।2015।।
- वे भी कृतार्थ और धन्य हैं जो पापकर्मरूपी मैल को छुड़ानेवाले क्षपकरूपी तीर्थ में सम्पूर्ण भक्ति और आदर के साथ स्नान करते हैं। अर्थात् क्षपक के दर्शन, वन्दन और पूजन में प्रवृत्त होते हैं।
गिरिणदियागिपदेशा, तित्थाणि तवोधणेहिं जदि उसिदा। तित्थं कधं ण हुज्जो, तव गुणरासी सयं खवउ।।2016।।
- यदि तपस्वियों द्वारा सेवित पहाड़, नदी आदि प्रदेश तीर्थ होते हैं तो तपस्यारूप गुणों की राशि क्षपक स्वयं तीर्थ क्यों नहीं है!
पुव्वरिसीणं पडिमाउ, वंदमाणस्स होइ जदि पुण्णं। खवयस्स बंदओ किह, पुण्णं विउलं ण पाविज।।2017।।
- यदि प्राचीन ऋषियों की प्रतिमाओं की वन्दना से पुण्य होता है, तो क्षपक की वन्दना करनेवालों को विपुल पुण्य क्यों नहीं प्राप्त होगा?
जो ओलग्गदि आराधयं, सदा तिव्वभत्ति संजुत्तो। संपज्जदि णिव्विग्या, तस्स वि आराहणा सयला।।2018।।
- जो तीव्र भक्तिसहित आराधक की सेवा-वैयावृत्य करता है उस पुरुष की भी आराधना निर्विघ्न सम्पन्न होती है।