Book Title: Jain Vidya 25
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 65
________________ जैनविद्या 25 एकान्त में हो, नगर से अधिक दूर न हो, शुद्ध हो। वह क्षपक के संस्तरण से पश्चिम-दक्षिण दिशा में, या दक्षिण दिशा में या पश्चिम दिशा में हो (1965-66)। (1) अविचार भक्तप्रत्याख्यान यदि सहसा मरण उपस्थित हो जाये तो साधक ‘अविचार-भक्त-प्रत्याख्यान' स्वीकार करता है। वह तीन प्रकार का है - निरुद्ध, निरुद्धतर और परमनिरुद्ध। चलने में अशक्त होने पर निरुद्ध भक्त होता है। इसमें साधक अपनी परिचर्या स्वयं करता है और आवश्यकता होने पर ही दूसरे की सहायता लेता है। सर्पादि के डसने से सहसा मरण आने पर साधक आचार्य से आलोचना प्रतिक्रमण करता है (2006-2015)। (2) इंगिनीमरण इंगिनीमरण वही साधक करता है जिसने आत्मस्वरूप का स्वानुभव कर लिया हो और मृत्यु की इच्छा करता हो। भक्तप्रत्याख्यान में और इंगिनीमरण में . अन्तर यह है कि भक्त प्रत्याख्यान में साधक दूसरे से सेवायें ले सकता है जबकि इंगिनीमरण में उसे सब-कुछ स्वयं करना पड़ता है। प्रायोपगमन में इन दोनों तत्त्वों की अनुमति नहीं है। इंगिनीमरण में अंगोपांग चला सकता है जबकि प्रायोपगमन में ध्यान मुद्रा अचल रहती है। भगवती आराधना में 33 गाथाओं में इंगिनीमरण की व्याख्या की है। तदनुसार इस मरण की भी विधि 'भक्त प्रत्याख्यान' जैसी ही है। इसमें साधक निर्ग्रन्थ अवस्था धारण कर श्रुताभ्यास, विनय और समाधि में स्थिर रहता है। संघ को सूचित कर आलोचना, प्रत्याख्यान, तप, इन्द्रियसंयम आदि करता हुआ संघ से निकलकर गुफा आदि में तृणादि का संस्तरण लगा कर जीवनपर्यन्त आहारादि का त्याग कर धर्मध्यान करता है, अनुप्रेक्षाओं का चिन्तन करता है, और सभी . प्रकार के उपसर्ग और परीषह सहता है (2023-55)। ___इंगिनीमरण के साहित्यिक उल्लेख कम मिलते हैं। त्रिषष्ठि शलाकापुरुषचरित में कुमारनन्दिन और नागिल का उल्लेख आता है। कुमार अग्निदाह करना चाहता था पर नागिल ने इसे इंगिनीमरण की ओर प्रेरित किया। शिवकोट्याचार्य की कन्नड़ वड्ढाराधने (पृ. 343) में चाणक्य का उदाहरण दिया गया है जिसने इंगिनीमरण स्वीकार किया था। कन्नड़ शिलालेख (ई. 1000) में मुनि सिंहनन्दि का नाम आता है जिन्होंने इंगिनीमरण स्वीकार किया। उनकी स्मृति में वहीं स्मारक भी बनाया गया।

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