Book Title: Jain Vidya 25
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 69
________________ जैनविद्या 25 __56 समाधियोग्य आसनों में शुभचन्द्र ने ज्ञानार्णव में निम्नलिखित आसन विशेष उपयोगी बताए हैं - पर्यंकासन, अर्धपर्यंकासन, वज्रासन, वीरासन, सुखासन, पद्मासन और कायोत्सर्ग। इनमें पर्यंकासन और कायोत्सर्ग आसन अधिक अनुकूल होते हैं (28.10-12)। प्राणायाम समाधि में उपयोगी नहीं होता। कायोत्सर्ग आदि करते समय ललाट और नासिकान पर चित्त को केन्द्रित करना चाहिए। आसनों के साथ साहित्य में विविध योगों का वर्णन मिलता है - क्रियायोग, प्रतिमायोग, त्रिकालयोग, नित्ययोग, आतपयोग, एकपादतप, एकशैयासनतप, कायक्लेशतप, पंचाग्नि तप, परमयोग, प्रतिमानियोग, सूक्ष्म शरीरयोग, सूर्य प्रतिमा योग, स्थान योग आदि। इन आसनों में पर्यंकासन, पद्मासन, कायोत्सर्ग और प्रतिमायोग, वीरासन, कुक्कुटासन अधिक लोकप्रिय रहे हैं। बाहुबली का कायोत्सर्ग प्रसिद्ध ही है। अधिकांश प्रतिमाएँ पर्यंकासन में मिलती हैं। शुभोपयोग के लिए दोनों आसन अच्छे माने जाते हैं। समाधिमरण के सन्दर्भ में वड्ढाराधने में सद्धर्म, उपशमन, परित्याग आदि शब्दों का उपयोग हआ है। उसमें इसके लिए पर्यंकासन, कायोत्सर्ग, वीर शैय्यासन और एकपार्श्वनियम अधिक उपयोगी माना है। साधक की इच्छाशक्ति और रत्नत्रय के प्रति भक्ति उसमें सभी तरह के परीषहों को सहन करने का अदम्य साहस भर देती है। वह 'समाधिमरण भवतु' सोचता रहता है और मुक्ति-प्राप्ति का लक्ष्य बनाये रखता है। दक्षिण में समाधिमरण के शिलालेखीय प्रमाण बहुत मिलते हैं। ये उल्लेख 600 ई. से 1517 ई. तक के शिलालेखों में उत्कीर्ण हैं। लगभग 110 शिलालेख में 115 साधकों के नामोल्लेख हैं जिन्होंने समाधिपूर्वक अपने प्राण त्यागे थे। श्रवणबेलगोल में ऐसे उल्लेख बहुत हैं जो समाधिमरण की ओर संकेत करते हैं। समाधि के साथ ही वहाँ संन्यास, आराधना, सल्लेखना, पंचपद आदि शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। यहाँ के साधकों में गृहस्थ और मुनि, उपासिकायें और आर्यिकाएँ सभी सम्मिलित हैं। श्रवणबेलगोल ही नहीं, समूचे कर्णाटक में इसके शिलालेखीय प्रमाण मिलते हैं। शिमोग, मैसूर, धारवाड और बीजापुर उनमें प्रमुख हैं। इन साधकों में मूलसंघ, द्रविड़संघ, यापनीयसंघ के साधु अधिक रहे हैं। ये उल्लेख सातवीं शती से ही मिलने लगते हैं। इन साधकों में माचिकब्बे, बालचन्द्र श्रितमुनि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं जिन्होंने संसार की नश्वरता और जीवन का अन्तिम

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