Book Title: Jain Vidya 25
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 71
________________ जैनविद्या 25 अक्षय मंत्र पदंगलु है। चावुण्डराय ने कुछ ऐसे साधकों के उदाहरण दिये हैं जिन्होंने पंचपदनमस्कार का उदाहरण - ध्यानकर अपनी आपत्तियों को दूर किया है। जैसे जयकुमार की पत्नी ने अपने पति को मुक्त कराया। नयसेन ने चन्द्रलेखा को; वरांग, धन्यकुमार, कंस, सीता के भी उदाहरण दिये हैं। नागचन्द्र, पार्श्वपण्डित, पम्प, नागवर्म आदि आचार्यों ने पंचपदों पर चिन्तन किया है और किसी भी स्थिति में उसका उच्चारण या ध्यान करने की सलाह दी है। 58 महाकवि पम्प ने इस सन्दर्भ में अपने आदिपुराण में महाबल की कथा विस्तार से दी है जिसमें पंचनमस्कार का जप करते हुए उसने प्रायोपगमन मरण के माध्यम से अपना शरीर त्याग किया। आचण्ण ने वर्धमान महावीर का उदाहरण भी विस्तार से दिया है। दक्षिणवर्ती जैन शिलालेखों में इस प्रकार के अनेक उदाहरणों का उल्लेख है जिनमें पंचनमस्कार का ध्यानकर साधकों ने मरण प्राप्त किया। डॉ. सेट्टर ने ऐसे लगभग एक शतक उदाहरण साहित्य और शिलालेखों से खोज निकाले हैं जिनमें साधकों ने पंचपद के उच्चारणपूर्वक समाधि ली, सल्लेखना धारण की। उनकी निषद्याएँ भी मिलती हैं जो स्मारक के रूप में लगभग 11वीं से 14वीं शताब्दी में निर्मित की गई थीं। इस प्रकार भगवती आराधना में मरण की विधि का सांगोपांग विवेचन हुआ है और उसी के आधार पर श्रवणबेलगोल में जैनाचार्यों और गृहस्थों ने इस विधि का उपयोग कर अपने सांसारिक भाव को सुधारने का प्रयत्न किया है। इस दृष्टि से श्रवणबेलगोल ने एक पुण्यस्थली का रूप ले लिया जहाँ भगवती आराधना में निर्दिष्ट विधि को व्यावहारिक रूप दिया गया। तुकाराम चाल सदर नागपुर 440001 * यह लेख जैन संस्कृति संरक्षक संघ, शोलापुर से प्रकाशित संस्करण पर आधारित है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106