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जैनविद्या 25
हो शुद्ध स्वरूप प्राप्त होएगा। इस जीव का रक्षक सहायी केवल धर्म ही है। सात गाथाओं (1756-1762 ) में एकत्व भावना भायी है।
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4. अन्यत्व भावना
संसार के सर्व जीव अन्य अन्य हैं, कोई किसी का नहीं है, ऐसी भावना अन्यत्व भावना में होती है। अज्ञानी जीव अपने-से अन्य स्त्री, पुत्र, कुटुम्बादिक के सम्बन्ध में दुःख देख सोच करता है, किन्तु अनादि काल से असातावेदनीय आदि कर्म के उदय से जो स्वयं चतुर्गति के दुःख भोग रहा है, उसके बारे में क्या करना है, ऐसा सोच नहीं करता। पंच परिवर्तनरूप अनन्त संसार में कर्मोदय से परिभ्रमण करते कोई जीव किसी का स्वजन नहीं है। मोह एवं मिथ्यात्व भाव के कारण स्त्री, पुत्र, कुटुम्बादिक में लोक आसक्त हो रहा है। किन्तु कोई किसी का नहीं, समस्त जीव अन्य-अन्य हैं, समस्त सम्बन्ध कर्मजनित हैं, विषय- कषाय के पुष्ट कारक विनाशीक हैं। अनन्त काल में समस्त जीव अनन्त बार स्वजन भये, अनंत बार स्वजन होएँगे । अतः किस-किस में स्वजनपना कर संकल्प करें? जो वर्तमान में मित्र स्वजन दिखते हैं वे पूर्व में घात करनेवाले शत्रु थे और जो वर्तमान में शत्रु जैसे दिखते हैं वे पूर्व में हितकारी - मित्र हुए थे और आगे भी ऐसे ही होंगे। अतः इनमें राग-द्वेष रूप बुद्धि नहीं करो। समस्त अन्य-अन्य हैं।
जैसे रात्रि में वृक्ष में पक्षियों का संयोग होकर प्रातः देशांतर गमन हो जाता है उसी प्रकार लोक में जन्म-जन्म में अनेक प्राणियों का संयोग होता है और आयु पूर्ण होने पर एक शरीर को छोड़ अन्य शरीर धारण कर नये-नये स्वजन ग्रहण करता है। जैसे एक आश्रम में अनेक ग्रामों के पथिक विश्राम करते हैं वैसे ही अनेक योनियों के जीव एक कुल में आकर मिलते हैं और आयु पूर्ण होने पर अनेक गतियों में चले जाते हैं। लोक में भिन्न-भिन्न प्रकृति के व्यक्ति हैं उनके स्वभाव भी नाना रूप हैं। बिना स्वभाव मिले प्रीति नहीं होती। इससे कोई भी किसी का प्रिय नहीं होता। समस्त जीवों के प्रयोजन - प्रति संबंध हैं, कार्य के निमित्त ही का सम्बन्ध है। कार्य नहीं तो सम्बन्ध नहीं। बालू के ढेर - समान सम्बन्ध बिखर जाते हैं। सभी अन्य - अन्य हैं। किसी का किसी से सम्बन्ध नहीं है यह निश्चय कर पर की प्रीति त्यागकर आत्महित में प्रीति करना उचित है। लोक में पुत्र को आधार मानकर स्वार्थवश पुत्र का पोषण करता है, माता का पोषण करता है। बहुत उपकार करने पर शत्रु भी मित्र हो जाते हैं और वांछित भोग में विघ्न करने या अपमान करने पर
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