Book Title: Jain Vidya 25
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 48
________________ जैनविद्या 25 अप्रेल 2011-2012 आचार्य शिवार्य-कृत 'भगवती आराधना' में समाधिमरण - डॉ. प्रेमचन्द्र रांवका आचार्य शिवार्य/शिवकोटि-कृत 'भगवती आराधना' जैन साहित्य का प्रथम कोटि का मुनि-आचारपरक प्राचीन ग्रन्थ है। यह सम्यक्ज्ञान, सम्यक्दर्शन और सम्यक्चारित्र तथा तपरूप चार मुक्ति-प्रदातृ आराधनाओं पर अधिकारपूर्ण प्राचीन ग्रन्थ है। मुनि-धर्म से सम्बन्धित यह ग्रन्थ वट्टकेरि-कृत मूलाचार-सदृश प्रसिद्ध है। कल्पसूत्र की स्थिविरावली' में शिवभूति नामक एक आचार्य का उल्लेख आया है तथा 'आवश्यक मूल भाष्य' में शिवभूति को वीर निर्वाण से 609 वर्ष बाद दिगम्बर संघ का संस्थापक कहा है।' कुन्दकुन्दाचार्य ने 'भाव पाहुड़' में शिवभूति के द्वारा भाव-विशुद्धिपूर्वक केवलज्ञान-प्राप्ति का उल्लेख किया है। आचार्य जिनसेन ने हरिवंशपुराण में लोहार्य के पश्चाद्वर्ती आचार्यों में शिवगुप्ति मुनि का उल्लेख किया है, जिन्होंने अपने गुणों से अर्हबलि पद को प्राप्त किया था। आदिपुराण में शिवकोटि मुनीश्वर और उनकी चतुष्टय मोक्षमार्ग की आराधनारूप हितकारी वाणी का उल्लेख किया है। आचार्य प्रभाचन्द्र के 'आराधना कथाकोश' व देवचन्द्र-कृत राजवली कथे' में शिवकोटि को स्वामी समन्तभद्र का शिष्य बताया है। इन सब उल्लेखों से ज्ञात होता है कि आचार्य शिवार्य प्रथम शताब्दी ईसवी के हैं।

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