Book Title: Jain Vidya 25
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 29
________________ जैनविद्या 25 जाता है। वह मन से भी अचेलक हो जाता है, और परिग्रह से सर्वथा मुक्त हो जाता है। सल्लेखना का यही उद्देश्य होता है। इस प्रकार ‘भगवती आराधना' 'संवेग रंगशाला' का आधारभूत ग्रन्थ रहा है। दोनों ग्रन्थों की अवधारणा में कोई विशेष अन्तर नहीं है, मात्र साम्प्रदायिक अभिनिवेश की सन्नद्धता में आचार्यों ने इस विषय को उपकृत किया है। DOO 16 तुकाराम चाल सदर नागपुर-440001 * यह लेख जैन संस्कृति संरक्षक संघ, शोलापुर से प्रकाशित संस्करण पर आध है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106