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जैनविद्या 25
प्रसिद्ध वृत्तिकार अभयदेव की प्रार्थना पर लिखा था। इसकी रचना सं. 1125 (1068 ई.) में हुई। डॉ. उपाध्ये ने कुछ गाथाओं के उद्धरण देकर यह विचार व्यक्त किया है कि जिनचन्द्र सूरि के समक्ष ‘भगवती आराधना' रही है।
3. देवभद्र-कृत आराधना, 4. आराधना विधि, 5. देवभद्र-कृत आराधनासार, 6. कुलप्रभ-कृत आराधना सत्तरी,
7. रविचन्द्र, जयशेखर, नागसेन और लोकाचार्य द्वारा लिखित आराधनासार,
8. आराधनास्तव, 9. आराधना स्वरूप, 10. आराधना प्रकरण,
11. आराधना पताका - वीरभद्र सूरि (सं. 1078) द्वारा रचित इस ग्रन्थ में 990 गाथाएँ हैं।
12. आराधना कुलक - इस नाम से चार ग्रन्थ मिलते हैं जिनके लेखक हैं - अभयदेव सूरि (11वीं शती) आदि आचार्य।
13. आराधना पंचक,
14. आराधना (पर्यन्त) - सोम सूरि द्वारा रचित यह ग्रन्थ 70 प्राकृत गाथाओं में है।
15. आराधना श्रावक - समयसुन्दर सूरि (सं. 1669) द्वारा रचित, . 16. आराधना - अजितदेव सूरि द्वारा लिखित (1629 सं.)। भगवती आराधना
भगवती आराधना में कुल 2170 गाथाएँ हैं। इसकी टीकाओं में गाथासंख्या में मतैक्य नहीं है। अपराजित सूरि द्वारा मान्य कतिपय गाथाएँ (क्र. 151, 343 आदि) अमितगति और आशाधर द्वारा स्वीकृत नहीं हैं। आशाधर ने बहुत-सी ऐसी गाथाओं का उल्लेख किया है जिन पर अपराजित ने टीका नहीं लिखी (गाथा क्र. 117-9, 178, 1354, 1432, 1556, 1605-7, 1639-40, 1978, 2111, 2135 आदि)। पं. कैलाशचन्दजी ने शोलापुर की मुद्रित प्रति और हस्तलिखित प्रतियों के आधार पर तुलनात्मक दृष्टि से 2170 के स्थान पर 2165