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जैनविद्या 25
जो भी हैं, प्रायः टीका रूप में हैं। इनमें अपराजितसूरि कृत 'विजयोदया' और आशाधर कृत 'मूलाराधना दर्पण' विशेष उल्लेखनीय हैं।
आराधना विषयक श्वेताम्बर साहित्य
श्वेताम्बर परम्परा में 'आराधना' पर अपेक्षाकृत अधिक साहित्य मिलता है। आगमिक ग्रन्थों में आचारांग, सूत्रकृतांग, उत्तराध्ययन, दशाश्रुतस्कन्ध, वृहत्कल्प, जीत कल्प, व्यवहार, निशीथ आदि ग्रन्थों में मुनि आचार के साथ ही समाधिमरण की साधना का वर्णन हुआ है। निर्युक्ति, भाष्य, चूर्णि आदि में भी उस पर चिन्तन किया गया है। उत्तराध्ययन के पाँचवें अध्ययन में इसकी विस्तृत चर्चा है।
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प्रकीर्णक ग्रन्थों में विशेषरूप से इस पर विवेचन किया गया है। मुनि पुण्यविजयजी द्वारा संपादित 'पण्णयसुत्ताई' में संकलित 33 प्रकीर्णकों में से 22. प्रकीर्णक समाधिमरण से संबंधित हैं 1. चन्द्रा वेध्यक, 2. मरणसमाधि, 3. आतुर प्रत्याख्यान, 4. महाप्रत्याख्यान, 5 संस्तारक, 6. चतु: शरण, 7. . आतुरप्रत्याख्यान, 8. भक्तपरिज्ञा, 9. वीरभद्राचार्य कृत आतुरप्रत्याख्यान, 10. आराधनापताका, 11. वीरभद्राचार्य कृत आराधनापताका, 12. पर्यन्ताराधना, 13. आराधना पंचकम्, 14. आतुरप्रत्याख्यान, 15 आराधना प्रकरण, 16. जिनशेखर श्रावक प्रति सुलस श्रावक आराधिक आराधना, 17. नन्दन मुनि आराधित आराधना, 18. आराधना कुलकम्, 19. मिथ्यादुष्कृतकुलकम्, 20. आलोचा कुलकम्, और 21. आत्मविशोधि कुलकम् ।
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अन्य प्रकीर्णक ग्रन्थ हैं
1. वीरभद्र कृत आराधनापताका ( 1000 गाथाएँ), 2. आराधना कुलक, 3. आलोचनाकुलक, 4. मिथ्यादुष्कृत, 5. आत्मविशोधि, 6. चतुःशरण, 7. आतुरप्रत्याख्यान, 8. आराधना, 9. संस्तार का महाप्रत्याख्यान, 10. भक्तपरिज्ञा, 11. आराधनासार, 12. आराधनापंचक, 13. मरणविभक्ति, 14. आराधनापताका ( 886 गाथाएँ) ।
प्रकीर्णक साहित्य से प्रभावित एक 'संवेगरंगशाला' नामक ग्रन्थ भी उपलब्ध होता है जिसके लेखक हैं - खरतरगच्छीय जिनचन्द्र सूरि । उन्होंने वि. सं. 1125 में छत्रावली (छात्राल) नगर गुजरात में इसकी रचना की। वे चैत्यवासी परम्परा से भिन्न संविग्न या सुविहित परम्परा में दीक्षित थे। इस ग्रन्थ में 10,054 गाथाएँ हैं। इस ग्रन्थ का प्रकाशन वि.सं. 2025 में बंबई से हुआ था। इसमें गौतम स्वामी के माध्यम से महासेन राजा का वैराग्यवर्धक चरित्र वर्णित है। इसमें आराधना