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जैनविद्या 25
अप्रेल 2011-2012
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भगवती आराधना और संवेग रंगशाला
- प्रो. (डॉ.) श्रीमती पुष्पलता जैन
आचार्य शिवार्य द्वारा रचित 'भगवती आराधना' जैन आचारशास्त्र - परम्परा का प्रमुख ग्रन्थ है। इसमें मरणकाल में आराधना के स्वरूप का विस्तृत विवेचन है। मरणकाल के पूर्व का जीवन सम्यक् चारित्रिक अभ्यास से भरा होना चाहिए तभी आराधना में परिपक्वता आ पाती है। इसे मरणसमाधि कहा गया है। यही यथार्थ साधना है। इसमें विफल होने पर जीवन की समूची साधना निष्फल हो जाती है।
इस आलेख में हम आराधना विषयक उपलब्ध साहित्य का विवरण देते हुए आचार्य शिवार्य और उनकी 'भगवती आराधना' की तुलना श्वेताम्बरीय ग्रन्थ 'संवेग रंगशाला' से करने का प्रयत्न करेंगे।
सल्लेखना की पृष्ठभूमि
सल्लेखना या समाधिमरण की पृष्ठभूमि में मुख्य उद्देश्य रहता है सांसारिक वासनाओं से मुक्त होकर जीवन के अन्तिम समय को आत्मसाधना में लगाना और रत्नत्रय का परिपालन करते हुए शरीर को छोड़ना । यह एक लम्बी दुस्साध्य प्रक्रिया है जिससे कर्मों से निवृत्त होकर मोक्ष पद प्राप्त किया जा सकता है। इस