Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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श्रो नैन सिद्धान्त बोल संग्रह, छठा भाग (१)श्री सीमन्धर स्वामी (२)श्री युगमन्धर स्वामी (३) श्री बाहु स्वामी (४) श्री सुबाहु स्वामी (५) श्री सुजात स्वामी (श्री संयातक स्वामी) (६) श्री म्वयं प्रभ स्वामी (७) श्री ऋपमानन स्वामी (८) श्री अनन्त वीर्य स्वामी (8) श्री सूरप्रभ स्वामी (१०) श्री विशालधर स्वामी (विशाल कीर्ति स्वामी) (११ श्री वज्रधर स्वाम। (१२) श्री चन्द्रानन ग्वामी १३ श्री चन्द्र वाहु स्वामी । ४श्री भुजंग स्वामी(भुजंगप्रभस्वामी) १५,श्री ईश्वर स्वामी १६) श्री नेमिप्रभ स्वामी नमीश्वर स्वामी (१७ श्री वीरसेन स्वामी (१८। श्री महाभद्र स्वामी(१६)श्री देवयश सामी(२०)श्री अजितीर्य स्वामी । बीस विहरमानों के चिह्न लांछन क्रमशः इस प्रकार हैं
(१) वृषभ २ हम्ती (३) मृग ४) कपि (५) सूर्य (६) चन्द्र (७)सिंह (८) हस्ती (8) चन्द्र १०) सूर्य ( १)शंख (१२) वृषभ (१३) कमल (१४ कमल (१५) चन्द्र १६) सूर्य १७) वृषभ (१८) हस्ती २६) चन्द्र (२०) स्वस्तिक ।
श्री बहरमान एक विशति स्थानक) विनोकसार) ९०४-बीस कल्प बृहत्कल्प सूत्र प्रथम उद्देशे में साधु साध्वियों के आहार. स्थानक आदि वीस बोलों सम्बन्धी कल्पनीयता और अकल्पनीयता का वर्णन है, चे क्रागः नीचे दिये जाते हैं
(१) साधु साध्वियों को कच्चे ताल, कदली (केले) आदि वृक्षों के फल एवं मूल अखण्डित लेना नहीं कल्पता है परन्तु यदि टुकड़े किये हुए हों और अचित्त हों तो वे ले सकते हैं। यदि वे ५के हो और अचित्त हों तो साधु उन्हें दुकड़े और अखण्डित दोनों तरह से ले सकता है ।माध्वी इन्हें अखण्डित नहीं ले सकती,इनके टुकड़े भी तभी ले सकती हैं यदि विधि पूर्वक किए गए हों। विधिपूर्वक किए गए पके फलों के टुकड़े भी साधी को लेना नहीं कल्पता है।