Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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भी जैन सिद्धान्त बोल संग्रह छठा भाग
ने कहा-वह तो लोक में प्रचलित पुराने श्लोक ही सुनाता है। राजा ने कहा-तुम ऐसा कैसे कहते,हो ? मन्त्री ने कहा-मैं ठीक कहता हूँ। जो श्लोक वररुचि सुनाता है वे तो मेरी लड़कियों को भी याद हैं। यदि आपको विश्वास न हो तो कल ही मैं अपनी लड़कियों से वररुचि द्वारा कहे हुए श्लोकों को ज्यों के स्यों कहलवा सकता हूँ। राजा ने मन्त्री की बात मान ली।
दूसरे दिन अपनी लड़कियों को लेकर मन्त्रीराजसभा में पाया और पर्दे के पीछे उन्हें विठादिया। इसके पश्चात् वररुचि राजसमा में आया और उसने एक सौ आठ श्लोक सुनाये। जब वह सुना चुका तो सकडाल की बड़ी लड़की यक्षा उठकर सामने आई और उसने वे सारे रलोक ज्यों के त्यों सुना दिये क्योंकि वह उन्हें एक बार सुन चुकी थी। इसके बाद क्रमशः दूसरी, तीसरी, चौथी, पाँचवीं, छठी और सातवीं लड़की ने भी वे श्लोक सुना दिये। यह देखकर राजा वररुचि पर बहुत क्रुद्ध हुआ। उसने अपमान पूर्वक वररुचि को राजसभा में से निकलवा दिया। ___ वररुचि बहुत खिन्न हुआ। उसने सकडाल को अपमानित करने का निश्चय किया । लकड़ी का एक लम्बा पाटिया लेकर वह गंगा किनारे आया। उसने पाटिये का एक हिस्सा जल में रख दिया और दूसरा बाहर रहने दिया। एक थैली में उसने एक सौ पाठ मोहरें रखी और रात्रि में गंगा के किनारे जाकर उस पाटिये के जल निमम हिस्से पर उसने उस थैली को रख दिया । प्रातःकाल वह पाटिये के बाहर के हिस्से पर बैठकर गंगा की स्तुति करने लगा । जब स्तुति समाप्त हुई तो उसने पाटिये को दवाया जिससे वह मोहरों की थैली ऊपर आगई । थैली 'दिखाते हुए उसने लोगों से कहा-राजा मुझे इनाम नहीं देता तो क्या हुआ; मुझे गंगा प्रसन्न होकर इनाम देती है। इसके बाद वह थैली