Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
View full book text
________________
श्री जैन मिद्धन्त बोल संग्रह, छठा भाग . १५७ विच्छेद (२)अईत्प्ररूपित धर्म का विच्छेद (३) पूर्वज्ञान का विच्छेद
और (४) अग्नि का विच्छेद । . ___ पहले के तीन स्थान भाव अन्धकार के कारण हैं। अरिहन्त आदि का विच्छेद उम्पात रूप होने से द्रव्य अंधकार का भी कारण कहा जा सकता है। अगेन के विच्छेद से तो द्रव्य अंककार 'सिद्ध है।
(ठणाग ४ उद्देशा ३ सूत्र ३२४ ) (२०) प्रश्न-अजीर्ण कितते प्रकार का है.१ . -. . उत्तर-अजीर्ण चार प्रकार के हैं--(१) ज्ञान का अजीर्णअहंकार (२) तप का अजीर्ण-क्रोध (३) क्रिया का अजीर्ण-ईपी (४) अन्न का अजीर्ण-विचिका और वमन,पहले तीन भात्र अर्जःर्ण हैं और चौथा द्रव्य अजीर्ण है । प्रश्नोत्तर शतक में भी बार प्रकार के अजीर्ण बताये हैं, जैसे कि· · अजीर्ण तपसः क्रोधो, ज्ञानाजीर्णमहकृतिः। . परतप्तिः क्रियाजीर्णमन्नाजीर्ण विसूचिका ।। , भावार्य-तप का अजीर्ण क्रोध है और अहंकार ज्ञान का अजीर्ण है । ईपी क्रिया का और विविका अन का प्रमाण है। - (२१) प्रश्न-बाद के कितने प्रकार हैं और साधु कोकोनसा वाद किसके साथ करना चाहिये ? ..
। .. उत्तर-बाद के तीन प्रकार हैं-शुष्कवाद, विवाद और धर्मवाद । , शुष्कवाद-अभिमानी, कर स्वभाव वाले, धर्मद्वपी और विवेक रहित पुरुप के साथ वाद करना शुष्कवाद है। अभिमानी अपनी हार, नहीं मानता, क्रूर स्वभाव वाला हार जाने पर शत्रुता करने लगता है, धर्मद्वपी निरुत्तर हो जाने पर भी सत्य धर्म स्वीकार नहीं करता और अविवेकी पुरुष के साथ याद करने से कोई मतलब ही हल नहीं होता। इन लोगों से वाद करने से वाद का असली प्रयोजन सिद्ध नहीं होता। सिर्फ कण्ठशोपण होता है। यही कारण