Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह छठा भाग
पाँच समिति, वारह भावना, बारह पडिमा पाँच इन्द्रियनिरोध, पच्चीस प्रतिलेखना, तीन गुप्ति और द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के भेद से चार प्रकार का अभिग्रह- ये सब मिला कर सित्तर भेद होते हैं ।
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नोट- पॉच समिति, तीन गुष्टि का स्वरूप इसी ग्रन्थ के तीसरे भाग के बोल नं ० ५७० (आठ प्रवचन माता) में तथा चारह भावना और चारह पडिमा का स्वरूप चौथे भाग में क्रमशः बोल नं०८१२ और ७६५ में दिया जा चुका है। पच्चीस प्रतिलेखना आगे बोल नं ० ६३६ में है । (प्रवचनसारोद्वार द्वार ६६-६७ गाथा ५५२-५६६ ) ( धर्म संग्रह अधिकार : पृ०१३०)
६३८ - पाँच महाव्रतों की पच्चीस भावनाएं
महाव्रतों का शुद्ध पालन करने के लिए शास्त्रों में प्रत्येक महाव्रत की 'पॉच २ भावनाएं बताई गई हैं । वे नीचे लिखे अनुसार हैं
पहले अहिंसा महाव्रत की पाँच भावनाए - (१) ईर्यासमिति (२) सनगुप्ति (३) वचन गुप्ति (४) आलोकित पान भोजन ( ५ ) आदानभण्डमात्र निक्षेपणा समिति । दूसरे सत्य महाव्रत की पाँच भावनाएं -- (६) अनुविचिन्त्यभाषणता (७) क्रोध विवेक (८) लाभविक ( 8 ) भयविवेक (१०) हास्यविवेक । तीसरे अदत्तादान faraण अर्थात् च महाव्रत की पांच भावनाएं-- (११) अवग्रहानुज्ञापना (१२) सीमापरिज्ञान (१३) अवग्रहानुग्रहणता (१४) श्राज्ञा लेकर साधकावग्रह भोगना (१५) आज्ञा लेकर साधा - रण भक्त पान का सेवन करना । चौथे ब्रह्मचर्य महाव्रत की पांच भावनाएं- (१६) स्त्री पशु पंडक संसक्त शयनासन वर्जन (१७) स्त्री कथा विवर्जन (१८) स्त्री इन्द्रियालोकन चर्जन (१६) पूर्वरत पूर्व क्रीडितानुस्मरण (२०) प्रणीताहार विवर्जन । पांचचे अपरिग्रह महाव्रत की पांच भावनाएं - (२१) श्रोत्रेन्द्रिय रामो परति (२२) चक्षुरिन्द्रिय रागोपरति (२३) घ्राणेन्द्रिय गगोपरति (२४) जिह्वन्द्रिय रागोपरति (२५) स्पर्शनेन्द्रिय रागोपति ।
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