Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
View full book text
________________
२३२
श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
चाहिए कि यह मेरे कल्याण की ही बात कहता है। __(8) पूर्वोक्त प्रकार से शिक्षा दिया गया एवं शास्त्रोक्त प्राचार की ओर प्रेरित किया गया साधु शिक्षा देने वालों पर किञ्चिमात्र भी क्रोध न करे, उन्हें पीड़ित न करे तथा उन्हें किसी प्रकार के कटु वचन भी न कहे किन्तु उन्हें ऐसा कहे कि मैं भविष्य में प्रमाद न करता हुआ शास्त्रानुकूल आचरण करूँगा। (१०) जङ्गल में जब कोई व्यक्ति मार्ग भूल जाता है तब यदि कोई मार्ग जानने वाला पुरुष उसे ठीक मार्ग बतादे तो वह प्रसन्न होता है और उस पुरुष का उपकार मानता है, इसी तरह साधु को चाहिये कि हितशिक्षा देने वाले पुरुषों का उपकार माने और समझे कि ये लोग जो शिक्षा देते हैं इसमें मेरा ही कल्याण है।
(११) फिर इसी अर्थ की पुष्टि के लिये शास्त्रकार कहते हैंजैसे मार्ग भ्रष्ट पुरुष मार्ग बताने वाले का विशेषरूप से सत्कार करता है इसी तरह साधु को चाहिये कि सन्मार्ग का उपदेश एवं हित शिक्षा देने वाले पुरुष पर क्रोध न करे किन्तु उसका उपकार माने और उसके वचनों को अपने हृदय में स्थापित करे । तीर्थङ्कर देव का और गणधरों का यही उपदेश है।
(१२) जैसे मार्ग का जानने वाला पुरुष भी अँधेरी रात में मार्ग नहीं देख सकता है किन्तु सूर्योदय होने के पश्चात् प्रकाश फैलने पर माग को जान लेता है।
(१३) इसी प्रकार सूत्र और अर्थ को न जानने वाला धम में अनिपुण शिष्य धर्म के स्वरूप को नहीं जानता किन्तु गुरुकुल में रहने से वह जिन वचनों का ज्ञाता वन कर धर्म को ठीक उसी प्रकार जान लेता है जैसे सूर्योदय होने पर नेत्रवान् पुरुष घट पटादि पदार्थों को देख लेता है। (१४) ऊँची, नीची तथा तिर्थी दिशाओं में जो त्रस और