Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, छठा भाग २७५ - मैंने तो तुम्हें अपनी नोली ज्यों की त्यों लौटा दी है। अब मैं कुछ नहीं जानता । अन्त में उस आदमी ने राजदरबार में फरियाद की। न्यायाधीश ने पूछा-तुम्हारी नोली में कितने रुपये थे? उसने जवान दिया-एक हजार रुपये न्यायाधीश ने उसमें खरे रुपये डाल कर देखा तो जितना भाग कटा हुआ था उतने रुपये याको बच गये, शेष सब समा गये । न्यायाधीश को उस आदमी की वात सच्ची मालूम पड़ी । उमने सेट को बुलाया और अनुशासन पूर्वक असली रुपये दिलवा दिये । न्यायाधीश की यह औत्पत्तिकी बुद्धि थी।
(२१) नाणक-एक श्रादमी किसी सेठ के यहाँ मोहरों से भरी हुई थैली रख कर देशान्तर गया। कई वर्षों के बाद सेठ ने उस थैली में से असली मोहरें निकाल ली और गिन कर उतनी ही नकली मोहरें वापिस भर दी तथा थैली को ज्यों की त्यों सिला कर रख दी । कई वर्षों के पश्चात् उक्त धरोहर का स्वामी देशान्तर से लौट आया । सेठ के पास जाकर उसने थैली माँगी। सेठ ने उसकी थैली दे दी । वह उसे लेकर घर चला आया। जब थैली को खोल कर देखा तो असली मोहरों की जगह नकली मोहरें निकली। उसने जाकर सेट से कहा । सेट ने जवाब दिया-तुमने मुझेजो थैली दी थी, मैने वही तुम्हें वापिस लौटा दी है । नकली असली के विषय में में कुछ नहीं जानता । सेट की बात सुन कर वह बहुत निराश हुआ। कोई उपाय न देख उसने न्यायालय में फरियाद की। न्यायाधीश ने उससे पूछा-तुमने सेठ के पास थैली कर रखी थी ? उसने
थैली रखने का ठीक समय बता दिया । __न्यायाधीश ने मोहरों पर का समय देखा तो मालूम हुआ कि वे पिछले कुछ वर्षों की नई बनी हुई हैं, जब कि थैली मोहरों के समय से कई वर्ष पहले रखी गई थी। उसने सेठ को झूठा ठहराया। धरोहर के मालिक को असली मोहरें दिलवाई और सेठ को