Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

View full book text
Previous | Next

Page 266
________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला पवत की परिक्रमा करते हैं। तपे हुए सोने के समान इसका सुनहला वर्ण है। यह चार वनों में युक्त है। भूमिमय विभाग में भद्रशाल वन है उसस पाँच सौ योजन ऊपर नन्दन वन है। उसस बासठ हजार पाँच सौ योजन ऊपर सौमनस वन है। उस से छत्तीस हजार योजन ऊपर शिखर पर पाण्डुक बन है। इस प्रकार वह पर्वत चार सुन्दर वनों से युक्त विचित्र क्रीड़ा स्थान है। इन्द्र भी स्वर्ग से आकर इस पर्वत पर आनन्द का अनुभव करते हैं। (१२) यह सुमेरु पर्वत मन्दर, मेरु, सुदर्शन, सुरगिरि आदि अनेक नामों से जगत् में प्रसिद्ध हे । इसका वर्ण तपे हुए सोने के समान शुद्ध है । सब पर्वतों में यह पर्वत अनुत्तर (प्रधान) है और उपपर्वतों के कारण अति दुर्गम है अर्थात् सामान्य जन्तुओं का उस पर चदना बड़ा कठिन है। यह पर्वत मणियों और औषधियों से सदा प्रकाशमान रहता है। (१३) यह पर्वतराज पृथ्वी के मध्य भाग में स्थित है। सूर्य के समान यह कान्ति वाला है । विविध वर्ण के रत्नों से शोभित ' होने से यह अनेक वर्ण चाला और विशिष्ट शोभा वाला है और इसलिये वा मनोरम है । सूर्य के समान यह दशों दिशाओं को प्रकाशित करता रहता है। . (१४) मेरु का दृष्टान्त बता कर शास्त्रकार दार्टान्त बतलाते हैं"महान सुमेरु पर्वत का यश ऊपर कहा गया है। उसी प्रकार ज्ञात पुत्र श्रमण भगवान् महावीर भी सब जाति वालों में श्रेष्ठ हैं । यश में समस्त यशस्वियों से उत्तम हैं, ज्ञान तथा दर्शन में ज्ञान दर्शन वालों में प्रधान हैं और शील में समस्त शीलवानों में उत्तम हैं। (१५) जैसे लम्बे पर्वतों में निषध पर्वत श्रेष्ठ है और वर्तुल (गोल) पर्वतों में रुचक पर्वत श्रीष्ठ है। उसी तरह अतिशय ज्ञानी भगवान महावीर भी सब मुनियों में श्रेष्ठ हैं ऐसा बुद्धिमानों ने कहा है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274