Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह छठा भाग २५३ . . rrrrrrrr.... - .... .. --- --~- w.mammmmmmmmmm. इसलिये मैं पृथ्वी लाया हूँ ! प्रथम दर्शन में यह मंगल वचन सुन कर राजा बहुत प्रसन्न हुआ । रोहक के साथ में आये हुए गॉव के लोग भी बहुत खुश हुए । राजा ने रोहक को वहीं रख लिया और गाँव के लोग घर लौट गये।
राजा ने रोहक को अपने पास में सुलाया । पहला पहर बीत जाने पर राजा ने रोहक को आवाज दी-रे रोहक ! नागता है या सांता है ? रोहक ने जवाब दिया-देव ! जागता हूँ। राजा ने पूछा-तू क्या सोच रहा है ? रोहक ने जवाब दिया-देव ! में इस बात पर विचार कर रहा हूँ कि बकरी के पेट में गोल गोल गोलियाँ (मिंगनियॉ) कैसे बनती हैं ? रोहक की बात सुन कर राजा भी विचार में पड़ गया । उमने पुनः रोहक से पूछा-अच्छा तुम्ही बताओ, ये कैसे बनती है ? रोहक ने कहा-देव ! वकरी के पेट में संवर्तक नाम का वायु विशेष होता है। उसीसे ऐसी गोल गोल मिंगनियाँ बन कर बाहर गिरती हैं। यह कह कर रोहक सो गया । रोहक की बुद्धि का यह ग्यारहवाँ उदाहरण हुआ।
पत्र-दो पहर रात बीतने पर राजा ने पुनः आवाज दी-रोहक ! क्या सो रहा है या जाग रहा है ? रोहक ने कहा—स्वामिन् ! जाग रहा हूँ। राजा ने कहा-क्या सोच रहा है ? रोहक ने जवाब दिया-मैं यह सोच रहा हूँ कि पीपल के पत्ते का दण्ड बड़ा होता है या शिखा । रोहक का कथन सुन कर राजा भी सन्देह में पड़ गया । उसने पूछा-रोहक ! तुमने इस विषय में क्या निर्णय किया है ? रोहक ने कहा-देव ! जब तक शिखा का भाग नहीं सूखता तब तक दोनों बराबर होते हैं। राजा ने आस पास के लोगों से पूछा तो उन्होंने भी रोहक का समर्थन किया । रोहक वापिस सो गया । यह रोहक की बुद्धि का बारहवाँ उदाहरण हुआ।
खाडहिला (गिलहरी)-रात का तीसरा पहर बीत जाने