Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 238
________________ २६८ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला आसक्त हो गई । स्त्री के शरीरचिन्ता-निवृत्ति के लिये जंगल में कुछ दूर चली जाने पर वह स्त्री का रूप बना कर रथ में आकर पुरुष के पास बैठ गई। जब स्त्री शरीरचिन्ता से निवृत्त हो रथ की तरफ आने लगी तो उसने पति के पास अपने सरीखे रूपयाली दूसरी स्त्री को देखा । इधर स्त्री को आती हुई देख कर व्यन्तरी ने पुरुष से कहा-यह कोई व्यन्तरी मेरे सरीखा रूप बना कर तुम्हारे पास आना चाहती है । इसलिये रथ को जल्दी चलायो । व्यन्तरी के कथनानुसार पुरुष ने रथ को हाँक दिया। रथ हाँक देने से स्त्री जोर जोर से रोने लगी और रोती रोती भाग कर रथ के पीछे आने लगी। उसे इस तरह रोती हुई देख पुरुष असमञ्जस में पड़ गया और उसने रथ को धीमा कर दिया। थोड़ी देर में वह स्त्री स्थ के पास आ पहुँची । अब दोनों में झगड़ा होने लगा। एक कहती थी कि मैं इसकी स्त्री हूँ और दूसरी कहती थी-मैं इसकी स्त्री हूँ। आखिर लड़ती झगड़ती वे दोनों गांव तक पहुँच गई।वहाँन्यायालय में दोनों ने फरियाद की। न्यायाधीश ने पुरुष से पूछा-तुम्हारी स्त्री कौनसी है ? उनर में उसने कहा-दोनों का एक सरीखा रूप होने से मैं निश्चयपूर्वक कुछ भी नहीं कह सकता । तब न्यायाधीश ने अपने बुद्धिवल से काम लिया । उसने पुरुषको दूर बिठा दिया और फिर उन दोनों स्त्रियों से कहा-तुम दोनों में जो पहले अपने हाथ से उस पुरुष को छू लेगी वही उसकी स्त्री समझी जायगी। न्यायाधीश की बात सुन कर व्यन्तरी बहुत खुश हुई। उसने तुरन्त वैक्रिय शक्ति से अपना हाथ लम्बा करके पुरुष को छू लिया। इससे न्यायाधीश समझ गया कि यह कोई व्यन्तरी है । उसने उसे वहाँ से निकलवा दिया और पुरुष को उसकी स्त्री सौंप दी। इस प्रकार निर्णय करना न्यायाधीश की औत्पत्तिकी बुद्धि थी। : (१५)त्री -मूलदेव और पुण्डरीक नाम के दो मित्र थे। एक

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