Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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श्री सेठिया जैन ग्रन्थ माला
के कष्ट को दूर किया था । आज फिर गांव पर कष्ट पाया है। तुम अपने बुद्धिवल से इसे दूर करो।ऐसा कह कर उन्होंने रोहक को राजाज्ञा कह सुनाई। रोहक ने कहा-खाने के लिए मेंढे को बास जव आदि यथा समय दिया करो किन्तु इसके सामने वृक (व्याघ की जाति का एक हिंसक प्राणी) बांध दो । यथा समय दिया जाने वाला भोजन और वृक का भय-दोनों मिल कर इसे वजन में न घटने देंगे और न बढ़ने देंगे।
रोहक की बात सन लोगों को पसन्द आगई । उन्होंने रोहक के कथनानुसार मेंढे की व्यवस्था कर दी । पन्द्रह दिन बाद लोगों ने मेंढा वापिस राजा को लौटा दिया । राजा ने उसे तोल कर देखा तो उसका वजन पूग निकला, घटा, न बढ़ा . राजा के पूछने पर उन लोगों ने सारा वृत्तान्त कह दिया । रोहक की बुद्धि का यह तीसरा उदाहरण हुआ।
(४) कुक्कुट-एक समय राजा ने उस गांव के लोगों के पास एक मुर्गा भेजा और यह आदेश दिया कि दूसरे मुर्गे के बिना ही इस मुर्गे को लड़ना सिखाओ और लड़ाकू बना कर वापिस भेज दो।
राजा के उपरोक्त आदेश का पालन करने के लिए गांव के लोग उपाय सोचने लंगे पर जब उन्हें कोई उपाय न मिला तर उन्होंने रोहक से इसके विषय में पूछा । रोहक ने कहा-इस मुर्ग के सामने एक बड़ा दर्पण (काच) रख दो । दर्पण में पड़ने वाली अपनी परछाई को दूसरा मुर्गा समझ कर यह उसके साथ लड़ने लगेगा । गांव के लोगों ने रोहक के कथनानुसार कार्य किया। इस प्रकार थोड़े ही दिनों में वह मुर्गा लड़ाकू बन गया । लोगों ने. वह मुर्गा वापिम राजा को लौटा दिया। अकेला मुर्गा लड़ाकू बन गया है इस बात की राजा ने परीक्षा की । युक्ति के लिये पूछने पर लोगों ने सबी हकीकत कह सुनाई। इससे राजा बहुत खुश