Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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श्री सेटिया जैन ग्रन्थमाना
__ इन सब की व्याख्या इसी ग्रन्थ के प्रथम भाग के बोल नं०३१७ से ३२१ में दी गई है। (समवायाग २५) आच राग २ श्रुत० ३ चूला अ० २४ पृ० १७६) (हरिभद्रीयावश्यक प्रतिक्र० अ०पृ०६५८) (धर्म सग्रह ३ अधिकार श्लो० ४५ टी• पृ० १२५)(प्र० सा० द्वार ७२ गा० ६३६ से ६४०) ६३६-प्रतिलेखना के पचीस भेद।
शास्त्रोक्त विधि से वस्त्र पात्र आदि उपकरणों को देखना प्रतिलेखना या पडिलेहणा है । इसके पचीस भेद हैं । प्रतिलेखना की विधि के छः भेद-११) उड्दं (२) थिरं (३) अतुरियं ४) पडिलेहे (५)पप्फोडे ६)पमज्जिज्जा अामादप्रतिलेखना के छः मेद(७) अनर्तित (८) अवलित (8) अननुबन्धी (१०) अमोसली (११) षट्पुरिम नवस्फोटा (१२) पाणिप्राणविशोधन। प्रमाद प्रतिलेखना छह-(१३)आरभटा (१४)सम्मा (१५)मोसली.१६)प्रस्फोटना (१७) विक्षिप्ता (१८) वेदिका | प्रमाद प्रतिलेखना सात-(१६) प्रशिथिल (२०) प्रलम्ब (२१) लोल (२२) एकामर्षा (२३) अनेक रूपधूना (२४)प्रमाद (२५) शंका।
इनका स्वरूप इसी ग्रंथ के द्वितीय भाग में क्रमशः बोल नं०४४७, ४४८,४४६, ५२१ में दिया गया है। (उत्त० अ० २६ गा० २४-२७ ६४०--क्रिया पच्चीस
कर्म बन्ध के कारण को अथवा दुष्ट व्यापार विशेष को क्रिया कहते हैं। क्रियाएं पच्चीस हैं। उनके नाम ये हैं:
(१) कायिकी (२, प्राधिकरणिकी (३, प्राषिकी (8) पारितापनिकी (५। प्राणातिपातिकी (६, श्रारम्भिकी (७) पारिग्रहिकी (८)मायाप्रत्यया (६)मिथ्यादर्शन इत्यया(१०)अप्रत्याख्यानिकी (११) दृष्टिजा (१२) पृष्टिजा (स्पर्शजा) .१३) प्रातीन्यिकी (१४) सामन्तोपनिपातिकी (१५) नैसृष्टिकी (१६) स्वाहस्तिकी (१७) आज्ञापनिका(आनायनी) (१८)वैदारिणी (१६) अनाभोग प्रत्यया