Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
(१) अधस्तन अधस्तन (२) अधस्तन मध्यम (३) अधस्तन उपरितन (४) मध्यम अधस्तन (५) मध्यम मध्यम (६) मध्यम उपरितन (७) उपरितन अधस्तन (८) उपरितन मध्यम (8) उपरितन उपरितन ।
नीचे की त्रिक में कुल विमान १११ हैं । मध्यम त्रिक में १०७ और ऊपर की त्रिक में १०० विमान हैं। जिन देवों के स्थिति, प्रभाव, सुख, धुति (क्रान्ति), लेश्या आदि अनुत्तर प्रधान) हैं अथवा स्थिति, प्रभाव आदि में जिन से बढ़ कर कोई दूसरे देव नहीं हैं वे अनुत्तरोपपातिक कहलाते हैं। इनके पाँच भेद हैं-(१) विजय (२)वैजयन्त (३) जयन्त (४) अपराजित (५) सर्वार्थसिद्ध । चारों दिशाओं में विजय प्रादि चार विमान हैं और बीच में सर्वार्थसिद्ध विमान है।
नव ग्रैवेयक देवों की उत्कृष्ट स्थिति क्रमशःतेईस, चौवीस, पच्चीस छब्बीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस और इकतीस सागरोपम की है। प्रत्येक की जघन्य स्थिति उत्कृष्ट स्थिति से एक सारोपम कम है। विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित-इन चार की उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम और जघन्य स्थिति इकतीस सागरोपम की है। सर्वार्थसिद्ध की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपमकी है। (पन्नवणा पद १ सू० ३८) (उत्तराध्ययन अध्ययन ३६
गा० २०७ से २१४) (भगवती शतक ८ उद्देशा १ सू० ३१०)
सत्ताईसवाँ बोल संग्रह ६४५-साधु के सत्ताईस गुण
सम्यग ज्ञान, दर्शन, चारित्र द्वारा जो मोक्ष की साधना करे वह साधु है। साधु के सत्ताईस गुण बतलाये गये हैं। वे इस प्रकार हैं