Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला भावार्थ पञ्चम भाग के बोल नं०८५३ में दिया जा चुका है। दूसरे उद्देशे की चौवीस गाथाओं का भावार्थ नीचे लिखे अनुसार है
(१) वृक्ष के मूल से स्कन्ध की उत्पनि होती है, स्कन्ध से शाखाएं उत्पन्न होती हैं, शाखाओं से प्रशाखाएं (टहनियॉ), प्रशाखाओं से पत्ते और इसके पश्चात् फूल, फल और रस पैदा होते हैं।
(२) धर्म का मूल विनय है और मोक्ष उत्कृष्ट फल है । विनय से ही कीर्ति श्रुत और श्लावावगैरह सभी वस्तुओं की प्राप्ति होती है।
(३ . जो क्रोधी, अज्ञानी, अहंकारी, कटुवादी, कपटी, सयम से विमुख और अविनीत पुरुष होते हैं । वे जल प्रवाह में पड़े हुए काष्ठ के सामान संसार समुद्र में वह जाते हैं।
(४) जो व्यक्ति किसी उपाय से विनय धर्म में प्रेरित किये जाने पर क्रोध करता है, वह मूर्ख आती हुई दिव्य लक्ष्मी को डन्डा लेकर खदेड़ता है।
(५ हाथी घोड़े आदि सवारी के पशु भी अविनीत होने पर दण्डनीय बन जाते हैं और विविध दुःख भोगते हुए देखे जाते हैं।
(६) इसके विपरीत विनय युक्त हाथी, घोड़े आदि सवारी के पशु ऋद्धि तथा कीर्ति को प्राप्त करके सुख भोगते हुए देखे जाते हैं।
(७) इसी कार विनय रति नर और नारियाँ कोड़े आदि की मार से व्याकुल तथा नाक कान आदि इन्द्रिय के कट जाने , से विरूप होकर दुःख भोगते हुए देखे जाते हैं। ___ (८) अविनीत लोग दण्ड और शास्त्र के प्रहार से घायल, असभ्य वचनों द्वारा तिरस्कृत, दीनता दिखाते हुए, पराधीन तथा भूख प्यास आदि की असह्य वेदना से व्याकुल देखे जाते हैं।
(E) संसार में विनीत स्त्री और पुरुष मुख भोगते हुए, समृद्धि सम्पन्न तथा महान् यश कीर्ति वाले देखे जाते हैं। (१०) मनुष्यों के समान, देव, यक्ष और गुह्यक (भवनपति) भी