Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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श्री जैन सिद्धान्त वोल संग्रह, छठा भाग २०५ देण्डक, तिर्यश्च पंचेन्द्रिय का एक दण्डक, मनुष्य का एक दण्डक, चाणव्यन्तर देवों का एक दण्डक, ज्योतिपी देवों का एक दण्डक
और वैमानिक देवों का एक दण्डक इस प्रकार वे चौवीस दण्डक होते हैं। इनकी क्रमशः गिनती इस प्रकार है
(१) सात नरक (२) असुरकुमार (३) नागकुमार (8) सुवर्ण कुमार (५) विद्युत्कुमार (६) अग्निकुमार (७) द्वीपकुमार (c) उदधिकुमार (8) दिशाकुमार (१०) वायुकुमार (११) स्तनित कुमार (१२) पृथ्वीकाय (१३) अप्काय (१४) तेउकाय ( ५) वायुकाय (१६) वनस्पतिकाय (१७) वेइन्द्रिय (१८) तेइन्द्रिय (१६) चतुरिन्द्रिय (२०) तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय (२१) मनुष्य (२२) चाणव्यन्तर (२३) ज्योतिषी (२४) वैमानिक ।
ये संसारी जीवों के चौबीस दण्डक हैं । दण्डकों की अपेक्षा जीवों के चौबीस भेद कहे जाते हैं ।
ठरणाग १ उद्देशा १ सू० ५१ टीका) (भगवती शतक १ उद्देशा १ की टोका) ६३५-धान्य के चौवीस प्रकार धान्य के नीचे लिखे चौवीस भेद हैं:धएणाई चउन्धीसं जब गोहुम सालि चीहि सट्ठीया। कोद्दच अणुया कंशू रालग तिल सुग्ग मासा य ॥ अयसि हरिमथ तिउडग णिप्फाव सिलिंद रायमासा य । इक्खू मसूर तुररी कुलत्थ तह धरणग कलाया । (१ यव-जी (२) गोधूम-गेहूं (३) शालि-एक प्रकार के चॉक्ल () ब्रीहि-एक प्रकार का धान्य (५) षष्ठीक-साठे चावल (६) कोद्रव-कोदों (७) अणुक-चाँचल की एक जाति (८) कंगुकांगनी (ह) रालग-माल कांगनी (१०)तिल-तिल (११)मुद्गमग (१२) माप-उड़द (१३) अतसी-अलसी (१४) हरिमन्थ