Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
(१३) जो व्यक्ति मैथुन सेवन नहीं करता तथा परिग्रह नहीं रखता, नाना प्रकार के विषयों में राग द्वेष रहित होकर जीवों की रक्षा करता है वह निःसन्देह समाधि को प्राप्त करता है ।
(१४) रति रति को छोडकर साधु तृण आदि के स्पर्श, शीतम्पर्श, उष्णस्पर्श तथा दंशमशक के स्पर्श को सहन करे तथा सुगन्ध और दुर्गन्ध को समभाव पूर्वक सहन करे ।
(१५) जो साधु वचन से गुप्त है वह भाव समाधि को प्राप्त है । साधु शुद्ध लेश्या को ग्रहण कर के संयम का पालन करे । वह स्वयं घर का निर्माण या संस्कार न करे, न दूसरे से करावे तथा स्त्रियों संसर्ग न करे |
(१६) जो लोग आत्मा को अक्रिय मानते हैं तथा दूसरे के पूछने पर मोक्ष का उपदेश देते हैं, स्नानादि सावध क्रियाओं में प्राक्न तथा लौकिक बातों में गृद्ध वे लोग मोक्ष के कारण भूत धर्म को नहीं जानते ।
(१७) मनुष्यों की रुचि भिन्न भिन्न होती है । इसलिए कोई क्रियवाद को मानते हैं और कोई क्रियावाद को मोक्ष के हेतु भूत यथार्थ धर्म को न जानते हुए ये लोग आरम्भ में लगे रहते हैं और रसलोलुप होकर पैदा हुए बाल प्राणी के शरीर का नाश कर अपने आत्मा को सुख पहुँचाते हैं । ऐसा कर के संयम रहित ये अज्ञानी जीव वैर की ही वृद्धि करते हैं ।
(१८) मूर्ख प्राणी अपनी आयु के क्षय को नहीं देखता । वह - बाह्य वस्तुओं पर ममत्व करता हुआ पाप कर्म में लीन रहता है। दिन रात वह शारीरिक मानसिक दुःख सहन करता रहता है और अपने को अजर अमर मान कर धनादि में आसक्त रहता है।
(१६) धन और पशु आदि सभी वस्तुओं का ममत्व छोड़ो । माता पिता आदि बान्धव व इष्ट मित्र वस्तुतः किसी का कुछ नहीं