Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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श्री जैन सिद्धान्त, चोल, संग्रह, छटा भाग
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संज्वल (स्वयंजल) १४ अनन्तक (सिंहसेन) १५ उपशान्त, १६ गुप्तिसेन १७ अतिपार्श्व १८ सुपार्श्व १६ मरुदेव २० घर २१ श्यामकोष्ठे २२ अग्निसेन (महासेन) २३ निपुत्र २४ वारिसेन समवायांग के टीकाकार कहते हैं कि दूसरे ग्रन्थों में चौवीसी का यह क्रम और तरह से भी मिलता है ।
(समवायाग १५६ ) ( प्रवचनसारोद्धार द्वार ७ गा० २६६-२६८)
६२६-वर्तमान अवसर्पिणी के २४ तीर्थङ्कर
वर्तमान- अवसर्पिणी काल में भरत क्षेत्र में चौबीस तीर्थङ्कर हुई हैं उनके नाम ये हैं-
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(१) श्री ऋषभदेवस्वामी (श्री आदिनाथस्वामी) (२) श्रीअजितनाथ स्वामी (३) श्री संभवनाथ स्वामी ( ४ ) - श्रीअभिनन्दन स्वामी (५) श्री सुमतिनाथ स्वामी (६) श्री पद्मप्रभस्वामी (७) श्री सुपार्श्वनाथस्वामी (८) श्रीचन्द्र प्रभस्वामी (8) श्रीसुविधिनाथस्वामी [श्री पुष्पदंतस्वामी ] (१०) श्री शीतलनाथस्वामी (११) श्री श्रेयांसनाथ स्वामी ( १२ ) श्री वासुपूज्यस्वामी (३) श्री विमलनाथ स्वामी (१४ श्री अनन्तनाथस्वामी (१५): श्री धर्मनाथस्वामी (१६) श्री शान्तिनाथस्वामी ( ७) श्रीकुंथुनाथस्वामी (१८) श्री नाथस्वामी (१६) श्रीमल्लिनाथस्वामी (२०) श्री मुनिसुव्रत स्वामी (२१) श्री नमिनाथस्वामी (२२) श्री अरिष्टनेमिस्वामी (२३) श्री पार्श्वनाथस्वामी (२४) श्रीमहावीर स्वामी ( श्री वर्धमानस्वामी)
आगे इन्हीं चौबीस तीर्थकरों का यन्त्र दिया जाता है । उसमें प्रत्येक तीर्थकर सम्बन्धी २७ बोल दिये गये हैं: