Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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श्री जैन सिद्धान्त बोले संग्रह, छठा भाग १६१ स्वामी और मल्लिनाथस्वामी ने तीन तीन सौ पुरुषों के साथ दीक्षा ली।भगवान् वासुपूज्यस्वामीने ६०० पुरुषों के साथ गृहत्याग किया। भगवान् ऋषभदेव स्वामी ने उग्र, भोग, राजन्य और क्षत्रिय कुल के चार हजार पुरुषों के साथ दीक्षा ली। शेष उन्नीस तीर्थकर एक एक हजार पुरुषों के साथ दीक्षित हुए। (प्र० सा० ३१ द्वार) (समवायाग १५७)
प्रथम पारणे का समय . संवच्छरेण मिक्खा लद्धा, उसमेण लोगणाहेण । सेसेहिं वीयदिवसे, लद्धाओ पढमभिक्खाओ ॥ भावार्थ-त्रिलोकीनाथ भगवान ऋषभदेव स्वामी को एक वर्ष के बाद भिक्षा प्राप्त हुई। शेष तीर्थङ्करों को दीक्षा के दूसरे ही दिन प्रथमभिक्षाकालाभ हुँया। (प्रा० म० १ ख०'गा० ३४२)(समवायाग १५७)
प्रथम पारणे का आहार उसमस्स पढमभिक्खा खोयरसो आसि लोगणाहस्स । सेसाणं परमरणं अमियरसोवमं आसि ॥
भावार्थ-लोकनाथ भगवान् - ऋषभदेव स्वामी के पारणे में इनुरस था और शेष तीर्थंकरों के पारणे में अमृतरस के सदृश स्वादिष्ट क्षीरान था। (ग्रा० म० १ ख० गा० ३४३) (समवायाग १५७)
. केवलोत्पत्तिस्थान — वीरोसहनेमीणं, जंभियवहिपुरिमताल उज्जिते ।
केवलणाणुप्पत्ती, सेसाणं जम्महाणे तु ॥ भावार्थ-वीर भगवान् को जम्भिक के बाहर (ऋज्वालिका नदी के तीर पर) केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। भगवान् ऋपभदेव स्वामी
* श्री मल्लिनाथ स्वामी ने तीन सौ पुरुष और तीन सौ स्त्रियां इस प्रकार ६०० के परिवार से दीना ली थी किन्तु सभी जगह एक ही की तीन गौ गंख्या ली गई है।