Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, छठा भाग
अन्तक्रिया छ: उपवास पूर्वक हुई। दूसरे से तेईसवें तीर्थङ्करों की अन्तक्रिया एक मास के उपवास के साथ हुई। श्री वीर स्वामी का निर्वाण घेले के तप से हुआ। (आ० म० १ ख० गा० ३२८)
निर्वाणस्थान अड्डात्रय चंपुज्जत, पात्रा सम्मेय सेल सिहरेसु । उसभ वासुपुल, नेमी चीरो सेसा य सिद्धिं गया ।
श्री ऋषभदेव स्वामी, वासुपूज्य स्वामी, अरिष्टनेमि स्वामी, वीर स्वामी और शेष अजितनाथ स्वामी आदिवीस तीर्थङ्कर क्रमशः अष्टापद, चम्पा, रैवतक, पापा और सम्मेत पर्वत पर सिद्ध हुए।
मा० म० १ ख० गा० ३२६)
मोक्षासन चारोसहनेमीणं पलियंक सेसाण य उस्सागो । भावार्थ-मोक्ष जाते समय श्री महावीरस्वामी, ऋषभदेवस्वामी, और अरिष्टनेमिस्वामी के पर्यक आसन था। शेष तीर्थकर उत्सर्ग (कायोत्सर्ग)आसन से मोक्ष पधारे। (सप्तातशत १५१ द्वार)
तीर्थंकरों की भव संख्या वर्तमान अवसर्पिणी काल के २४ तीर्थङ्कर भगवान् को सम्यक्त्व माप्त होने के बाद जितने भव के पश्चात् वे मान पधार उनका भवसंख्या इस प्रकार है :
ऋपभदेव स्वामी की भव संख्या १३, शान्तिनाथ स्वामी की १२, अरिष्टनेमि स्वामी की है, पार्श्वनाथ स्वामी की १०, महावीर स्वामी की २७ और शेष तीर्थक्षरों की भवसंख्या ३ है।
-(जैन तत्वादर्श पूर्वाई' पृ० ३८ से ७३) चीस बोलों में से किसकी आराधना कर तीर्थङ्कर गोत्र बांधा ? पढम चरमेहिं पुट्ठा, जिणहेऊ वीस ते अ इमे । सेसेहिं फासिया पुण एग दो तिरिण सव्वे वा । भावार्थ-प्रथम तीर्थङ्कर श्रीऋपभदेव स्वामी आर चरम तीर्थङ्कर श्री