Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला muammmmmmmmmmarinaimmmmmmmmmmns है कि इस वाद.का नाम शुष्कवाद रखा है। विजय होने पर इस वाद में अतिपात आदि दोपों की सम्भावना है एवं पराजय होने पर प्रवचन की लघुता होती है । इस तरह प्रत्येक दृष्टि से यह वाद वास्तव में अनर्थ बढ़ाने वाला है।
विवाद-यश और धन चाहने वाले, हीन और अनुदार मनोवृत्ति वाले व्यक्ति के साथ वाद करना विवाद है। इसमें प्रतिवादी विजय के लिये छल, जाति (दूषणाभास) आदि का प्रयोग करता है । तत्त्ववेत्ता के लिये नीति पूर्वक ऐसे वाद में विजय प्राप्त करना सुलभ नहीं है.। तिसं पर भी यदि वह जीत जाता है तो स्वार्थ ब्रश होने के कारण सामने वाला- शोक करने लगता है अथवां वादी से द्वेष करता है । तत्ववेत्ता मुनियों ने इसमें परलोक के विघातक अन्तराय आदि अनेक दोष देखे हैं। यही कारण है कि वाद के प्रयोजन से, विपरीत समझ कर इसका विवाद नाम रखा गया है।" ..... . .
धर्मवाद-कीर्ति, धन आदि न चाहने वाले, अपने सिद्धान्त "के जानकार, बुद्धिमान् और मध्यस्थवृति वाले व्यक्ति के साथ तन्त्र निर्णय के लिये वाद करना धर्मवाद है । प्रतिवादी परलोक भीर होता है, लौकिक फल की उसे इच्छी नहीं होती, इस लये वह वाद में युक्ति संगत रहता है। मध्यस्थति वाला होने से उसे सरलता पूर्वक समझाया जा सकता है। वह अपने दर्शन को जानता है और बुद्धिशील होता है, इसलिये वह अपने मत के गुण दापों को अच्छी तरह समझ सकता है। ऐसे वाद में विजय लाभ होने पर प्रतिवादी सत्य धर्म स्वीकार करता है। चादी की हार होने पर उसका अंतच में तच बुद्धिरूप मोहं नष्ट हो जाता है। . साधु को धर्मवाद ही करना चाहिये । शुष्कवाद और विवाद में उसे भाग न लेना चाहिये । वैसे अपवाद से समय पड़ने पर देश