Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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श्री सेठिया बन अन्धमानों
पतित हो जायगी । हे मुने! जरा विचार करो। इन विषयभोगों को किंपाकफल के समान दुखदायी समझ कर तुमने इनको ठुकरा दिया था। अब वमन किये हुए काम भोगों को तुम फिर से स्वीकार करना चाहते हो । वमन किये हुए की वांछा तो कौए और कुत्ते करते हैं । मुने ! जरा समझो और अपनी आत्मा को सम्भालो। __ वेश्या के मार्मिक उपदेश को सुनकर मुनि की गिरती हुई आत्मा पुनः संयम में स्थिर हो गई। उन्होंने उसी समय अपने पाप कार्य के लिये 'मिच्छामि दकर्ड' दिया और कहा
स्थूलभद्रः स्थूलभद्रः, स एकोऽखिलसाधुषु। युक्त दुष्करदुष्करकारको गुरुणा जगे।। अर्थात्-सव साधुओंमें एक स्थूलभद्र मुनिही महान् दुष्करक्रिया के करने वाले हैं। जिस वेश्या के यहाँबारह वर्ष रहे उसीकी चित्रशाला में चातुर्मास किया।उसने बहुत हावभाव पूर्वक भोगों के लिये मुनि से प्रार्थना की किन्तु वे किञ्चित् मात्र भीचलित नहुए ऐसे मुनि के लिये गुरु महाराज ने 'दुष्करदुष्कर' शब्द का प्रयोग किया था, वह युक्तथा।
इसके पश्चात् वे मुनि गुरु महाराज के पास चले आये और अपने पाप कर्म की आलोचना कर शुद्ध हुए।
स्थूलभद्र मुनि के विषय में किसी कवि ने कहा है--- गिरौ गुहायां विजने वनान्ते, वासं श्रयन्तो वशिनःसहस्रशः। हयेऽतिरम्ये युवतीजनान्तिके, वशी स एकः शकटालनन्दनः। वेश्या रागवती सदा तदनुगा, षड्भी रसैर्भोजनं । शुभ्रं धाम मनोहरं वपुरहो, नव्यो वयःसङ्गमः॥ कालोऽयंजलदाविलस्तदपियः कामं जिगायादरात्। तं वन्दे युवतिप्रबोधकुशल, श्रीस्थूलभद्रं मुनिम्॥ । अर्थात्-पर्वत पर, पर्वत की गुफा में, श्मशान में, वन में रह