Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, छठा भाग १३४ 'अक्षर' का क्या अर्थ है.१ .... ... ... .. ... . - उत्तर-वृहत्कल्प भाष्य की पीठिका में अक्षर का- अर्थ ज्ञान किया.है,और बतलाया है कि इसका अनन्तवां भाग सभी जीवों के सदा अनावृत्त रहता है। यदि ज्ञान का यह अंश भी आवृत्त-हो जाय तो जीव अजीव ही हो जाय । दोनों में कोई भेद न रहे, घने बादलों में भी जिस प्रकार सूर्य चन्द्र की कुछ न कुछ प्रभा रहती ही है इसी प्रकार.जीवों में भी. अक्षर के,अनन्त भाग परिमाण ज्ञान तो रहता ही है। पृथ्वी आदि में ज्ञान की यह मात्रा सुप्त मूर्छितावस्था की तरह अव्यक्त रहती है। ... ... .
अब यह प्रश्न होता है कि-ज्ञान पाँच प्रकार के हैं उन में से अक्षर का-वाच्य कौन.सा. ज्ञान समझा जाय ?- इसके उत्तर में भाष्यकार ने कहा है कि अक्षर का अर्थ केवलज्ञान और श्रुत
समझना चाहिये।
ती है। टीकाकार
.
नंदीसूत्र की टीका. में भी यही बात मिलती है । टीकाकार कहते हैं कि सभी वस्तु समुदाय का प्रकाशित करना जीव का स्वभाव है। यही केवलज्ञान है । यद्यपि यह सर्वघाती केवलजानावरण कर्म से आच्छादित रहता है तो भी उसका अनन्तवाँ भाग.तो सदा खुला ही रहता है। श्रुतज्ञान के अधिकार में कहा है कि यद्यपि सभी ज्ञान सामान्य रूप से अक्षर 'कहा जाता है तो भी श्रुतं ज्ञान का प्रकरण होने से यहाँ श्रुतंज्ञान समझना। चूंकि श्रुतंज्ञानं भतिज्ञान के विना नहीं होता इसलिये 'अक्षर' से मतिज्ञान भी लिया जाता है । (नन्दी सू. ४३ टी. पृ. २०१)
(नन्दी स . १ टी. पृ. ६८) । वृहत्कल्ल भाष्य पीठिका गा. ७२-७५ ).
(८) प्रश्न-उत्तराध्ययन में सांतावेदनीय की जघन्य स्थिति 'अन्तर्मुहूर्त की कही है और प्रज्ञापना सूत्र में बारह मुहूर्त की, 'यह कैसे? ' उत्तर-उत्तराध्ययनसूत्र अ०३३ गा०१६-२० मैं ज्ञानावरणीय,