Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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तब इस तरह की आकाशवाणी हुई--- समणे जदि कूलबालए, मागधियं गणि प्रं गमिस्सए राया य असोगचंदए, वैसालि नगरी, गहिस्सए |
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| अर्थात् - यदि कूलबालक नामक साधु चारित्र से प्रतित होकर मागधिका वेश्या से गमन करें तो कोणिक राजा कोट को गिरा कर विशाला नगरी को ले सकता है । यह सुनकर कोशिक राजा ने राजगृह से मागधिका वेश्या को बुलाकर उसे सारी बात समझा दी मागधिका ने कूलवालक को कोशिक के पास लाना स्वीकार किया।
श्री से दिया जैन Singe
अन्थमाला
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• किसी आचार्य के पास एक साधु था । आचार्य जब उसे कोई भी हित की बात कहते तो वह अविनीत होने के कारण सदा विपरीत अर्थ लेता और आचार्य पर क्रोध करता । एक समय
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आचार्य बिहार करके जा रहे थे । वह शिष्य भी साथ में था । जंब आचार्य एक छोटी पहाड़ी पर से उतर रहे थे तो उन्हें मार देने के विचार से उस शिष्य ने एक बड़ा पत्थर पीछे से लुढका दिया । ज्यों ही पत्थर लुढ़क कर नजदीक आया तो आचार्य को मालूम हो गया जिससे उन्होंने अपने दोनों पैरों को फैला दिया और वह पत्थर उनके पैरों के बीच होकर : निकल गया । श्राचार्य को क्रोध आ गया। उन्होंने कहा- अविनीत शिष्य ! तू इतने बुरे विचार रखता है ? जा, किसी स्त्री के संयोग से तू पतित हो जायगा । शष्य ने विचार किया- मैं गुरु के इन वचनों को झूठा सिद्ध करूंगा। मैं ऐसे निर्जन स्थान में जाकर रहूँगा जहाँ स्त्रियों का
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वागमन ही न हो फिर उनके संयोग से पतित होने की कल्पना ही कैसे हो सकती है। ऐसा विचार कर वह एक नदी के किनारे जाकर ध्यान करने लगा । वर्षाऋतु में नदी का प्रवाह बड़े वेग से आयी किन्तु उसके तप के प्रभाव से नदी दूसरी तरफ बहने लग गई । इमालये उसका नाम कूलचालक हो गया। वह गोचरी के