Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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श्री सेठिया जैन मन्यमीला... नगर में विराजतेंदुए अभग्नसेन विषयक, यह घटना कैसे हुई ? समाधान ये सभी अनर्थ प्राणियों के स्वीकृत. कर्मों के फल स्वरूप होते हैं, कर्म दो प्रकार के हैं : सोपक्रम और निरुपक्रमः। जो, वैर-वगैरह सोपक्रम कर्म के उदय से प्राप्त होते हैं. वे तीर्थङ्कर के अतिशय से-शान्त हो जाते हैं जैसे साध्य रोग औषध से मिट जाता है। किन्तु जो वैरादि निरुपक्रम कम के फलरूप हैं उन्हें अवश्य ही मोगना पड़ता है, असाध्य व्याधि की तरह उन पर उपक्रम, की असरं नहीं होता। यही कारण है कि सर्वातिशय-सम्पन्न तीर्थङ्करों को भी अनुपशान्त-वैर-वाले गोशाला आदि ने उपसर्ग दिये थे। ...
. :(-विपाक सूत्र अध्ययन ३, टीका) ' (५)प्रश्न-जब सभी भव्य जीव सिद्ध होजा मुंगे तो क्या,यह लोक, भन्यात्माओं से शन्य-हो; जायगा? .. उत्तर-जयन्ती: श्राविका ने यही प्रश्न भगवान महावीरे से पूछाथा। प्रश्नोत्तरभगवतीशतक.१२ उद्देशार सू.४४३में है। उत्तर इस प्रकार है- भव्यत्वं आत्मा का प्रारिणामिक भाव है। भविष्य में जो सिद्ध होने वाले हैं वे भव्य है। ये सभी भव्य जीव सिद्ध होंगे। यदि ऐसा न माना जाय तो वे भव्य ही न रहें। परन्तु यह सम्भव नहीं है कि सभी भयं सिद्ध हो जायगे और लोक भव्य -जीवों से खाली हो जायगा । यह तभी हो सकता है जबकि सारा,ही भविष्य कालविर्तमान रूप में परिणत हा जाय एवं लोक भविष्य काल से शून्य हो जाय। जब भविष्य काल की कोई अन्तं नहीं है तो भव्य जीवों से लोक कैसे खाली हो सकता है?
इसी के समाधान में, सूत्रकार ने आकाश श्रेणी का उदाहरण दिया है. जैसे अनादि अनन्त दोनों ओर से परिमित एवं दूसरी श्रेणियों से. घिरी हुई सर्व आकाश: श्रेणी में से--प्रति'समय परमाणु,पुंगल परिमाण खंड निकाले जाय एवं निकालते