Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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श्री जैन सिद्धान्त बोले संग्रह, छठी भाग हुआ। जब दूसर। चातुमास आया तब सिंह की गुफा में चातुर्मास करने वाले मुनि ने कोशा वेश्या के घर चातुर्मास करने की आज्ञा मांगी । गुरु ने आज्ञा नहीं दी फिर भी वह वहाँ चातुर्मास करने के लिये चला गया । वेश्या के रूप लावण्य को देखकर उसका चित्त चलित हो गया। वह वेश्या से प्रार्थना करने लगा। वेश्या ने कहा-मुझे लाख मोहरें दो। मुनि ने कहा-हम तो भिक्षुक हैं। हमारे पास धन कहाँ ? वेश्या ने कहा-नेपाल का राजा हर एक साधु को एक रत्नकम्बल देता है। उसका मूल्य एक लाख मोहर है। इसलिये तुम वहाँ जाओ और एक रत्नकम्बल लाकर मुझे दो। वेश्या की बात सुनकर वह मुनि नैपाल गया। वहाँ के राजा से रत्नकम्बल लेकर वापिस लौटा। मार्ग में जंगल के अन्दर उसे कुछ चोर मिले । उन्होंने उसकी रत्नकम्बल छीन ली । वह बहुत निराश हुआ ! आखिर वह वापिस नेपाल गया। अपनी सारी हकीकत कहकर उसने राजा से दूसरी कम्बल की याचना की। अब की बार उसने रत्नकम्बल को बांस की लकड़ी में डाल कर छिपा लिया । जंगल में उसे फिर चोर मिले । उसने कहा-मैं तो भिक्षुक हूँ। मेरे पास कुछ नहीं है। उसके ऐसा कहने से चोर चले गये । मार्ग में भूख प्यास के अनेक कष्टों को सहन करते हुए उस मुनि ने बड़ी सावधानी के साथ रत्नकम्मल को लाकर उस वेश्या को दी। रत्नकम्बल को लेकर वेश्या ने उसे अशुचि में फेंक दिया। जिससे वह खराब हो गई । यह देखकर. मुनि ने कहा--तुमने यह क्या किया, इसको यहाँ लाने में मुझे अनेक कष्ट उठाने पड़े हैं । वेश्या ने कहा-मुनि ! मैंने यह सब कार्य तुम्हें समझाने के लिये किया है । जिस प्रकार अशुचि में पड़ने से यह रत्नकम्बल खराब हो गई है. उसी प्रकार कामभोग रूपी कीचड़ में फंस कर तुम्हारी आत्मा भी मलिन हो जायगी,