Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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१३० , श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला dancimmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmms राजा श्रेणिक की तरफ आने लगा। राजा श्रेणिक ने कोणिक को 'आते हुए देखा । उसके हाथ में फरसा देखकर श्रेणिर्क ने विचार किया-न जाने यह मुझे किस'कुमृत्यु से मारे, अच्छा हो कि मैं स्वयं मर जाऊं। यह सोचकर उसने तालपुट विष खा लियाँ जिससे उसकी तत्क्षण 'मृत्यु हो गई।
नजदीक आने पर कोणिकं को मालूम हुआ कि विष खाने. से राजी श्रेणिक की मृत्यु हो गई है। वह तत्क्षण मुञ्छित होकर, भूमि पर गिर पड़ा. कुछ समय पश्चात् उसे चेत हुआ | वह बार बार पश्त्तापं करता हुआ कहने लगा--'मैं अधन्य हूं, मैं अकृत. पुण्य हूं, मैं महादुष्ट कर्म करने वाला हूँ. मेरे ही कारणं से राजा. श्रेणिक की मृत्यु हुई है। इसके पश्चात् उसने, श्रेणिक का दाह संस्कार किया।
कुछ समय बाद कोणिक चिन्ती, शोकरहित हुआ। वह राजगृह को छोड़कर चम्पा नगरी में चला गया और उसी को अपनी. राजधानी बनाकर वहीं रहने लगा। उसने कालं. सुकाल आदि दस ही भाइयों को उनके हिस्से का:राज्य वाँट कर दे दिया। । श्रेणिक राजा के छोटे पुत्र का नाम विहल्लंकमार था। श्रेणिक राजा ने अपने जीवन काल में ही उसे एक सेचानक गन्धहस्ती और अठारह सरी वकचूड़हार दे दिया.था. विहल कुमारं अन्तःपुर सहित हाथी पर सवार होकर गंगा नदी के किनारे जाता और वहाँ अनेक प्रकार की क्रिडाएं करता हाथी उसकी रानियों को अपनी सूंड में उठाता, पीठ पर बिठाता तथा और भी क्रीड़ापा द्वारा उनका मनोरंजन करता हुआ उन्हें गंगा में स्नान करवाता। इस प्रकार उसकी क्रीड़ाओं को देखकर लोग कहने लगे कि राज्यश्री का उपभोग तो वास्तव में विहल्लकुमार करता है। जब यह वात कोणिक की रानी पद्मावती ने सुनी तो उसके हृदय में ईप्या उत्प हुबह
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